जो अभिभावक पहुंचे उन्होंने इस व्यवस्था को शिक्षा विभाग की अच्छी पहल बताई। बच्चों की स्कूली गतिविधियों से रूबरू होने के बाद उन्होंने जरूरी सुझाव व शिकायतें भी दर्ज कराईं। गत शैक्षणिक सत्र में 2 फरवरी को हुए शिक्षक-अभिभावक सम्मेलन के सकारात्मक परिणामों को देखते हुए राज्य शिक्षा केंद्र ने प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में हर महीने इस तरह की बैठक बुलाने का निर्णय लिया है। शनिवार को इस सत्र की यह पहली बैठक थी। लेकिन अभिभावकों की उपस्थिति न के बराबर थी।
उत्कृष्ट विद्यालय के प्राचार्य गोपालशरण सिंह चौहान ने बताया कि दोपहर 3 बजे तक महज 33 फीसदी अभिभावक ही पहुंचे। जबकि, सभी को लिखित पत्र, फोन व वाट्सऐप के जरिए सूचना दी गई थी। जो अभिभावक आए उनसे बच्चों की मौजूदगी में ही डिस्कशन किया गया। क्लास टीचर्स ने बच्चों की उपस्थिति, तिमाही परीक्षा में परफार्मेंस व अन्य गतिविधियों से अवगत कराया। बच्चों की खूबियां व कमजोरी भी बताई।
ग्रामीण स्कूलों की दयनीय स्थिति
शिक्षक-अभिभावक बैठक को लेकर ग्रामीण क्षेत्र की स्कूलों की स्थिति दयनीय रही। कई स्कूलों में तो अभिभावकों को सूचित भी नहीं किया गया। जिन स्कूलोंं में सूचित किया गया था, वहां भी 10 से 15 फीसदी बच्चों के अभिभावक ही पहुंच पाए। भटनवारा स्कूल में करीब 500 विद्यार्थी पंजीबद्ध हैं लेकिन आधा सैकड़ा के आसपास ही अभिभावक पहुंचे। बडख़ुरा माध्यमिक शाला में 180 छात्र-छात्राएं पंजीकृत हैं, लेकिन 30 अभिभावक ही बैठक में पहुंचे।
यहां तो सूचना ही नहीं दी गई
शिक्षक-अभिभावक बैठक को लेकर सहायक संचालक एनके सिंह व एडीपीसी गिरीश अग्निहोत्री सहित अन्य अधिकारियों ने कुछ स्कूलों में अचानक पहुंचकर यथा स्थिति जानने की कोशिश की पर हालात संतोषजनक नहीं मिले। सहायक संचालक एनके सिंह ने बताया कि भटनवारा में 50 व बाबूपुर विद्यालय में 10 अध्यापक भी पहुंचे थे। जबकि, चोरहटा में बैठक ही नहीं हुई। यही स्थिति जसो संकुल की कुछ स्कूलों में भी देखने को मिली है।