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सतना

केन्द्रीय जेल प्रबंधन पर उठे सवाल, लॉकअप समय में बैरक से कैसे बाहर था कैदी

जेल में कैदी की आत्महत्या का मामला

सतनाJun 03, 2019 / 07:06 pm

suresh mishra

prisoner suicide case and love story in satna central jail

prisoner suicide case and love story in satna central jail

सतना। एक माह के अंदर केंद्रीय जेल सतना में दो कैदियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले ने हंगामा खड़ा कर दिया है। पूरे मामले में जेल प्रबंधन सवालों के घेरे में है। जेल में छोटे कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक जेल मैन्युअल का पालन नहीं कर रहे हैं। लगातार सुरक्षा को दरकिनार किया जा रहा। ऐसी ही लापरवाही शनिवार को देखने को मिली। इसके चलते कैदी अनिल कुशवाहा ने आत्महत्या कर ली। अब अपनी लापरवाही को जेल प्रबंधन दबाने में लगा है। सबसे बड़ी लापरवाही यह थी कि लॉकप के समय कैदी बैरक में नहीं थे बल्कि जेल के अंदर बैरक के बाहर घूम रहे थे। इसी बीच अनिल कुशवाहा ने रस्सी का जुगाड़ किया और उद्योग कार्यालय के सूनसान कमरे में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली।
ये है नियम
जेल के नियमों की बात करें तो सुबह 8-10 बजे और दोपहर 12-5 बजे तक लॉकप होता है। इस दौरान कैदियों को बैरक के अंदर बंद रखा जाता है। विशेष परिस्थिति में सक्षम अधिकारी के आदेश पर लॉकप खोला जाता है। लेकिन, सतना केंद्रीय जेल में लॉकप के नियम के पालन में मनमानी होती है। जेलकर्मी अपनी सुविधा अनुसार, लॉकप समय में कैदियों को बंद व बाहर करते रहते हैं। जेल अधीक्षक एनीपी सिंह की मानें तो कैदी ने शाम करीब 4.30 बजे आत्महत्या की है। सवाल उठता है कि 12-5 बजे तक लॉकप था, ऐसे में कैदी बैरक से बाहर क्या कर रहा था। उस पर जेलकर्मियों की नजर क्यों नहीं पड़ी? अगर जेलकर्मी जानते थे तो उसे बैरक में क्यों नहीं डाला? ऐसे तमाम सवाल हैं जिससे जेल प्रबंधन बचना चाहता है। जेल अधीक्षक भी ऐसे सवालों का सीधा जवाब नहीं दे रहे हैं।
जेलर को राहत क्यों?
एक माह के अंदर दो कैदियों ने आत्महत्या की है। दोनों वारदात के समय जेलर बद्री विशाल शुक्ला अवकाश पर थे। इसका लाभ उन्हें दिया जा रहा है। लेकिन, ये घटनाएं ऐसी नहीं हैं जो अचानक परिस्थिति अनुसार बनी हों। बल्कि लंबे समय की प्रतिक्रिया हैं, जो आत्महत्या के रूप में सामने आईं। जेल के अंदर हर गतिविधि व सूचना पर नजर रखने की सीधी जिम्मेदारी जेलर की होती है। चाहे एकतरफा प्रेम हो या अन्य रिश्तों की बात हो। अगर, जेलर को नहीं मालूम था तो उनकी पदीय जिम्मेदारी की घोर असफलता है। अगर, मालूम था और उन्होंने उचित कदम नहीं उठाया तो भी गैर जिम्मेदराना रवैया है। लिहाजा अवकाश के नाम पर जिम्मेदारी से बचाना जेल प्रबंधन पर सवाल खड़ा करता है।
जिम्मेदारी तय नहीं हुई
घटना के 24 घंटे बाद भी जेल प्रबंधन अपने कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय नहीं कर पाया। उल्टा उन्हें बचाने में लगा है। शनिवार को ड्यूटी में चक्कर गेट पर प्रहरी निलेश कुमार मिश्रा, चक्कर अधिकारी के रूप में मुख्य प्रहरी रामकरण शर्मा और खंड अधिकारी के रूप में अभिमन्यु पांडेय तैनात थे। इसके अलावा अन्य जेलकर्मी भी थे। इनकी जिम्मेदारी थी कि हर कैदी की गतिविधि पर नजर रखें। अगर कैदी ने आत्महत्या की है, तो सीधे तौर पर जिम्मेदारी बनती है पर प्रबंधन बचाने में लगा हुआ है।
डॉक्टर की टीम ने किया पीएम
रविवार सुबह करीब 11 बजे चार सदस्यीय डॉक्टरों की टीम ने कैदी के शव का पोस्टमार्टम किया। इसमें डॉ सुधीर सिंह, डॉ आरएन सोनी, डॉ केएल नामदेव व डॉ यूएस ठाकुर शामिल रहे। डॉक्टरों ने प्रथम दृष्ट्या फंदे पर लटकने व दम घुटने के कारण मौत माना है। हालांकि अभी विस्तृत रिपोर्ट नहीं दी है। पीएम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया। परिजन भी जेल प्रबंधन पर प्रताडऩा के आरोप लगाए हैं।
पुलिस व विभागीय जांच शुरू
मामले को लेकर पुलिस ने मर्ग कायम करते हुए जांच शुरू कर दी है। मौके से मिले तथ्यों के आधार पर जांच को आगे बढ़ाया जा रहा। जेल प्रबंधन ने भी विभागीय जांच के आदेश दिए हैं। उल्लेखनीय है कि कैदी रामकेश यादव के आत्महत्या की भी विभागीय जांच जारी है, जो करीब एक माह बाद भी अधूरी है।

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