मैहर कस्बे की आराजी नंबर 180 रकवा 21 बीघा 1 विश्वा रमैया कोल के स्वामित्व की जमीन थी। इसका अंश रकवा कभी किसी गैर आदिवासी के नाम विक्रय कर नामांतरण नहीं कराया गया। इसके बाद भी इस आराजी का अंश रकवा 2 बीघा 5 विश्वा (1.16 एकड़) प्रभुआ कुम्हार के नाम भू-स्वामित्व में दर्ज हो गया। साथ ही इस मामले में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व मैहर के यहां अपील किये जाने पर बिना तथ्यों की जांच किए अपील निरस्त कर दी गई। इससे व्यथित होकर रमैया के वारसान कलेक्टर न्यायालय में पहुंचे।
यह दिये गए तथ्य
बताया गया कि आराजी नंबर 180 का भू-स्वामी वर्ष 1958-59 की खतौनी के अनुसार रमैया कोल था। 1969-70 में बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के इस आराजी का अंश रकवा गैर आदिवासी के हक में अंतरण कर दिया गया। लेकिन अधीनस्थ न्यायलय ने इस तथ्य की जांच नहीं की। प्रमुआ कुम्हार ने बाद में यह आराजी कन्छेदी पिता शमिकराम अग्रवाल, जगमोहन पिता रामदास अग्रवाल व विनोद पिता रामदास अग्रवाल को बेच दी। इन लोगों ने इस जमीन को 19 अन्य लोगों को बेच दिया। लेकिन अधीनस्थ न्यायालय ने विधि का पालन न करते हुए अपील को निरस्त कर दिया। बताया गया कि जिन लोगों के विक्रय पत्रों को आधार मान कर अपीलाधीन आदेश पारित किया गया जबकि उन लोगों को न तो आवेदकों ने ही उनके पूर्वजों ने कभी जमीन बेची थी।
यह पाया कलेक्टर ने
इस मामले में प्रस्तुत खसरा नकल के अवलोकन पर कलेक्टर ने पाया कि आराजी क्रमांक 1801 रकवा 4.400 हैक्टेयर रमैया कोल के नाम पर दर्ज है। जिसमें चना गेहूं बोकर कब्जा है। कृषि भूमि से अन्य प्रयोजन के लिए डायवर्सन भी नहीं है। आदिवासी की जमीन गैर आदिवासी प्रभुआ कुम्हार के स्वामित्व में कैसे हुई इसकी भी जांच नहीं की गई और अधीनस्थ न्यायालय ने सरसरी तौर पर आवेदन निरस्त कर दिया। इस आधार पर कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट ने अधीनस्थ न्यायालय का अपीलाधीन आदेश निरस्त कर दिया। साथ ही मैहर की आराजी 180/1 का अंश रकवा 0.470 के सभी नामांतरण विधि विरुद्ध मानते हुए प्रभाव शून्य कर दिए। इस आराजी को खसरा वर्ष 1988-89 की भांति पूर्ववत आदिवासी व्यक्ति के स्वामित्व में दर्ज करन का आदेश पारित किया गया।
मैहर में मचा हड़कम्प
कलेक्टर न्यायालय के इस फैसले के बाद मैहर में जमीन कारोबार से जुड़े लोगों में हड़कम्प की स्थिति दिखी। यह मामला राजस्व अधिकारी के रिश्तेदारों से जुडा था और बहुचर्चित मामला रहा है। इस आदेश के बाद मैहर के राजस्व अधिकारियों के फोन लगातार घनघनाते रहे। उधर कलेक्टर ने तहसीलदार को आदेश का पालन सुनिश्चित करते पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करने आदेशित किया है। लिहाजा देर शाम तक कलेक्टर के आदेश पालन की प्रक्रिया जारी रही।
इस जमीन फर्जीवाड़े में डीएम की कार्रवाई से सीएमएचओ डॉ अशोक अवधिया भी प्रभावित हुए हैं। इन्होंने इस विवादित जमीन पर प्लाट ले रखा था। यहां पर उन्होंने अपना प्लाट अवधिया स्वर्णकार समाज अध्यक्ष डॉ अशोक अवधिया के नाम से ले रखा था। डीएम के आदेश के बाद इनकी भी जमीन आदिवासी के नाम वापस हो गई है।