दो दिवसीय कार्यक्रम में पहले दिन 25 नवंबर को नित्यानंद हल्दीपुरी का बांसुरी वादन, राजेश अली अकबर खां का सरोद वादन, शिराज अली के हाथों सरोद वादन और मैहर वाद्य वृंद की ओर से शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दी जाएगी।
आयोजन को लेकर प्रशासनिक तैयारियां 26 नवंबर को नई दिल्ली के राजेंद्र प्रसन्ना का शहनाई वादन, नई दिल्ली के सुभेंद्र राव का सितार वादन, भुवनेस कोकलली का गायन देवास तथा मैहर वाद्य वृंद की प्रस्तुति होगी। आयोजन को लेकर प्रशासनिक तैयारियां जारी है। एसडीएम ने भी मंगलवार को बैठक ली।
जल तरंग की तर्ज पर बना नल तरंग मैहर वाद्य वृंद 1930 के दशक में महामारी के पीडि़तों की मदद के लिए अलाउद्दीन खां ने मैहर बैंड की स्थापना की थी। अज्ञात बीमारी से जूझ रहे असहाय और लावारिसों को लेकर टोली बनाई। उन्हें शास्त्रीय संगीत की तालीम दी। उस्ताद के नाती और सरोद वादक राजेश अली खां के अनुसार, असहाय लोगों को बैंड से जोड़ते हुए 18 संगीतकारों की टीम खड़ी की। टीम देशभर में प्रस्तुति देती रही है। अलाउद्दीन खां ने जल तरंग की तर्ज पर दुर्लभ बंदूक की नली से नल तरंग का अविष्कार किया। जो पूरी दुनिया में मशहूर हुई। उन्होंने वाद्य वृंद को 278 कंपोजिशन्स दिए। जिसमें इंडियन-वेस्टर्न कल्चर का शास्त्रीय मिश्रण था। आज मात्र ३६ कंपोजिशन्स बचे हैं।
आरक्षण ने घोंटा संगीत का गला पूर्व विधायक मोतीलाल तिवारी का कहना है कि, कलाकारों के अभाव में मैहर वाद्य वृंद उस्ताद अलाउद्दीन द्वारा तराशी गई धुनें दमतोड़ रही हैं। प्रदेश सरकार आरक्षण के चलते अनभिज्ञ लोगों को शामिल कर लेती है। जबकि, इन्हें शास्त्रीय संगीत का शुरुआती ज्ञान भी नहीं है। दो से तीन साल की प्रैक्टिस के बाद ही वाद्य वृंद में कलाकारों की भर्ती किए जाने का मामला विधानसभा में उठाया था।
तरंग बजाने की युवाओं में दिलचस्पी सरकारों ने अनदेखी की। राजेश अली खां कहते हैं, वाद्य वृंद में दुर्लभ नल तरंग बजाने की युवाओं में दिलचस्पी है। योग्य कलाकारों को मौका नहीं दिया जाता। शास्त्रीय संगीत के ज्ञाताओं को भर्ती नहीं किया गया। संगीत महाविद्यालय के प्राचार्य सुरेश चतुर्वेदी लने कहा, दो साल बाद उनके साथ ही दूसरे कर्मचारी भी रिटायर हो जाएंगे। आठ पदों पर नई भर्ती के लिए शासन को पत्र भेजा है। सितार, तबला, हारमोनियम, सेलो, सरोद, इसराज, वायलिन के कलाकारों की मांग की गई है।