एक तरीके से विंध्य में कांग्रेस के छत्रप माने जाने वाले अजय सिंह और नारायण त्रिपाठी के बीच का विरोध राजनीतिक सीमाओं से ऊपर तक पहुंच चुका था। ऐसे में प्रदेश सरकार कांग्रेस की बनने के साथ ही जैसे ही नारायण की पींगे कांग्रेस से बढऩे लगीं तो अजय सिंह समर्थकों के दिलों में सांप लोटने लगा था। उधर, विधानसभा की कार्रवाई में जिस अंदाज में नारायण ने कांग्रेस का हाथ थामा और नारायण के कांग्रेस में आने की स्थितियां बनने लगी तो मैहर में एक धड़ा बगावत पर उतर आया। नारायण से हार पाने वाले श्रीकांत चतुर्वेदी ने प्रेस वार्ता बुलाकर नारायण का विरोध कर डाला तो अजय सिंह समर्थकों ने भी खुल कर नारायण की कांग्रेस वापसी का विरोध करना शुरू किया। हालांकि कांग्रेस नेताओं के इस विरोध पर उच्च स्तर से कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली।
हाई-वोल्टेज ड्रामा अभी उफान पर
अब जब मंगलवार को जिस तरीके से एक बार फिर नारायण ने भाजपा के साथ खड़े होकर कांग्रेस को लानत भेजी उससे सतना सहित विन्ध्य के एक बड़े काग्रेसी धड़े में खुशी का अंडर करेंट देखा गया। हालांकि नारायण का कांग्रेस के खेमे में खड़ा होना फिर भाजपा में वापस आने का हाई-वोल्टेज ड्रामा अभी उफान पर है लेकिन राजनीतिक खेमे में कहा जा रहा कि यह नारायण का एक नया प्रहसन है, जिसमें अभी कई नए संवाद आने बाकी हैं।
प्रदेश की राजनीति में मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी की पहचान दल-बदलू नेता के तौर पर होने लगी है। विधायक त्रिपाठी 2014 में भाजपा में शामिल होने से पहले कांग्रेस के विधायक थे। लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान वे भाजपा में शामिल हुए। इसका परिणाम यह रहा कि कांग्रेस को सतना लोस सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। इससे पहले नारायण समाजवादी पार्टी में थे। पहली बार विधायक भी वे समाजवादी पार्टी से ही बने थे।