गांव के महेश सिंह ने बताया कि कन्हैयालाल सिंह की मौत 11 मई 1998 को हो गई थी। लेकिन परिजनों को 14 मई को जानकारी मिली थी। कन्हैया सिंह के ही रेजीमेंट के एक वाहन ने दिल्ली से गांव आकर परिजनों को यह दुखद सूचना दी। दिल्ली से संदेश आने के बाद दोपहर तक राजपुताना राइफल्स के कुछ अधिकारी और जवान सेना के बैंड के साथ चूंद पहुंचे थे।
पुंछ से विमान द्वारा दिल्ली लाए गए कन्हैया सिंह के मृत देह को लेकर सेना का ट्रक 14 मई की शाम 7 बजे चूंद पहुंचा था। धार्मिक-रीति के अनुसार रात को अंतिम संस्कार संभव न होने के कारण 15 मई को सुबह शहीद कन्हैया सिंह का पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था।
शहीद की छोटी बेटी प्रियंका सिंह ने बताया कि उस समय मैं बहुत छोटी थी। हमे घटना ज्यादा याद नहीं है। हां गांव के लोग बतातें है कि पिता जी को पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई थी। पर हैरानी की बात है कि देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले जवान के प्रति सम्मान करने के लिए जिला प्रशासन के किसी उच्च अधिकारी ने यहां आना गवारा नहीं समझा था। जबकि किसी घटना की जानकारी जिला कलेक्टर को सैन्य नियमों के तहत पूर्व में ही सूचित कर दिया जाता है।
हालांकि बाद में जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के रिटायर्ड कर्नल गौतम सिंह, रिटायर्ड मेजर रामराज सिंह और तत्कालीन सांसद रामानंद सिंह ने बाद में चूंद पहुंचकर वीर कन्हैया सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की। शहीद की शहादत के दिन कोटर, बिरसिंहपुर, जैतवारा, सतना, कोठी, मझगवां से हजारों युवक शामिल हुए थे। पूरे गांव में मातम पसरा हुआ था।
प्रदेश सहित जिलेभर के लोगों में यही सवाल रहता है कि आखिर ऐसी कौन सी बात है कि इसी गांव के लोग सेना में जाते है। तो इस सवाल का जबाव दिए चूंद गांव में ठाकुर बाबा के नाम से मसहूर वीरेन्द्र सिंह ने। जो कुछ वर्ष पहले सेना में सूबेदार के पद से रिटायर्ड होकर घर लौटे है। उन्होंने बताया कि चूंद गांव में बसे अधिकांश सोमवंशी ठाकुर जाति के युवाओं में अपने पूर्वजों द्वारा किए गए बहादुरी पूर्ण कारनामों को लेकर गौरव की भावना है। और उसी भावना के चलते वह सब वीरता की परंपरा को आगे बढ़ाने के उददेश्य से फौज में जाना पसंद करते है।