यह है मामला कलेक्टर अनुराग वर्मा की ओर से आयुक्त किसान कल्याण तथा कृषि विभाग को एक चिट्ठी जाती है। इसके बाद इस चिट्ठी के जवाब में आयुक्त कलेक्टर को इस आशय की अनुमति दे देते हैं कि कृषि प्रक्षेत्र गहवरा की भूमि से निःशुल्क मिट्टी निकाल कर सड़क ठेकेदार मे. गौर टारकोट प्रा.लि. कैम्प जिगनहट को दे दी जाए।
कृषि अफसरों ने दिया हास्यास्पद अभिमत इस प्रकरण में आयुक्त ने यह भी उल्लेखित किया है कि विभागीय अभिमत में उप संचालक ने यहां 2005 व 06 में बनाए गए दो तालाबों का उल्लेख किया है। और यह भी बताया है कि बगल में दो नाले निकले हैं जिनकी गहराई अधिक होने से संचित वर्षा जल रिसाव के माध्यम से नालों में चला जाता है। यदि यहां तालाबों को पर्याप्त गहरा कर दिया जाए तो रिसाव के माध्यम से होने वाली जल हानि को रोका जा सकता है।
पूर्व के अधिकारियों ने नहीं दी थी अनुमति पूर्व के अधिकारियो के पास भी सड़क ठेकेदार अपना प्रस्ताव लेकर आया था। लेकिन अधिकारियों ने यह कहते हुए अनुमति देने से इंकार कर दिया था कि वह कृषि प्रक्षेत्र है। वहां पर उन्नत बीज की खेती होती है और नील हरित शैवाल का उत्पादन होता है। मिट्टी की उत्पादकता अधिकतम 4 मीटर होती है लिहाजा मृदा संरक्षण के लिहाजा से मिट्टी नहीं दी जा सकती है। न ही गहराई ज्यादा कराई जा सकती है क्योंकि इससे फसल की सघनता भी प्रभावित होगी।
कृषि प्रक्षेत्र से मिट्टी देना पूरी तरह गलत अब अपने मूल कैडर में जा चुके और मध्यप्रदेश के कृषि विभाग में संचालक कृषि रह चुके मोहनलाल मीना ने कहा कि यह अनुमति देना ही अनुचित है। अगर तालाब बनाना जरूरी है तो कृषि विभाग के पास अपने फंड है। इससे जो तालाब बनेगा उसकी तय डिजाइन सर्वे, जरूरत सब स्पष्ट होगी और उसका आकार आदि भी तय होगा। इसमें प्रक्षेत्र की मिट्टी बाहर नहीं जाएगी बल्कि मेड़ या प्रक्षेत्र में ही रहेगी। रोड ठेकेदार को तालाब गहरीकरण के नाम पर मिट्टी देना गलत है।
कलेक्टर से भी बोला झूठ इस मामले में कलेक्टर से भी तथ्य छिपाए गए। ठेकेदार ने यह जानकारी दी कि अर्थ वर्क के लिए जैसी मिट्टी चाहिए वो उसी क्षेत्र में मिलती है। जब इस मामले में लोक निर्माण विभाग के सेवा निवृत्त ईई जेएस तिग्गा से बात की गई तो उन्होने कहा कि अर्थ वर्क के लिए कोई बहुत स्पेशल मिट्टी नहीं चाहिए होती है। 7 सीबीआर (कैलीफोर्निया बियरिंग रेसियो) की मिट्टी चल जाती है। इस मामले में क्लास वन ठेकेदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उचेहरा में तमाम स्थानों पर यह मिट्टी है। लेकिन सड़क का काम करने वाला ठेकेदार अपनी लागत घटाने के लिए यह खेल कृषि विभाग के अधिकारियों से मिलकर कर रहा है।
तालाब बनाने का तय है नियम आरईएस में ईई हिमांशु तिवारी बताते हैं कि तालाब गहरीकरण और जीर्णोद्धार के तय नियम है। पहले उसका एल सेक्शन लेबल लिया जाना चाहिए। 30 मीटर पर क्रास सेक्शन लेना चाहिए। लेबल साउण्डिंग के बाद कंटूर नक्शा तैयार किया जाना चाहिए। फिर बॉरो क्षेत्र तय करते हुए ट्रायल पिट करने के बाद मिट्टी निकाली जाती है। यह मिट्टी तालाब के मेड़ पर ही डाली जाती है। इधर जिस तरीके से तालाब का गहरीकरण होना है उससे तालाब जैसी सरंचना नहीं बनती।
सकारात्मक सोचिए इस मामले में उप संचालक कृषि राजेश त्रिपाठी ने कहा कि सकारात्मक सोचिए। सड़क भी सरकार का काम है इसलिए मिट्टी देने में कोई हर्ज नहीं है। हम अपना तालाब भी गहरा करवा रहे हैं जिससे पानी का सीपेज रुक जाए।