कोरोना काल के दौरान लगातार दूसरे वर्ष बिन मौसम अमरूद में फल आने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। किसान राजेश सिंह ने बताया, हर सीजन में एक से डेढ़ लाख के अमरूद बेचते थे, लेकिन दो साल से यह घाटे का सौदा साबित हो रही है। बारिश के मौसम में अमरूद की फसल आ जाने से इसे न बाजार मिलता और न भाव। इसलिए उन्हें लाभ नहीं हो रहा। अमरूद को बाजार न मिलने का मुख्य कारण खरीफ सीजन में पकने वाले अमरूद के फल में मिठास नहीं होती।
जिले में देसी और हाइब्रीड अमरूद की 20 से अधिक बैरायटी हैं, जो सीजन में लोगों के स्वाद में मिठास घोलती हैं। लेकिन, इस मौसमी फल में दो साल से जलवायु परिवर्तन की मार पड़ रही है। इसका सीधा असर अमरूद की खेती और किसानों पर पड़ रहा है। जिले में 50 हेक्टेयर से अधिक रकबे में अमरूद की खेती होती है। 100 से अधिक किसान इस खेती से जुड़े हुए हैं।
कृषि वैज्ञानिक राजेंद्र सिंह नेगी ने बताया, दो साल से अमरूद की फसल मौसम मार झेल रही है। फरवरी-मार्च में तापमान अधिक होने के कारण 5 से 10 फीसदी फल ही लगते हैं। लिहाजा, रबी सीजन में अमरूद की फसल अच्छी होती है। इस साल गर्मी में लगातार हुई बारिश से अमरूद के 80 फीसदी पेड़ खरीफ सीजन में फल गए, लेकिन स्वाद गायब है। फल में मिठास लाने वाले तत्व पेड़ को पानी अधिक मिलने के कारण जमीन में घुल जाते हैं।