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सतना

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है यह वन औषधि, मांग बढ़ी

-प्रोटीन, विटामिन से है भरपूर

सतनाJul 17, 2020 / 02:39 pm

Ajay Chaturvedi

Wild mushroom

Wild mushroom

सतना. इन दिनों लोग खोज-खोज कर वनौषधियो का सेवन करने में जुटे हैं। ऐसे में विंध्य क्षेत्र में पाई जाने वाली एक वन औषधि की मांग इन दिन ज्यादा ही बढ़ गई है। इससे वनवासी भी प्रसन्न हैं, क्योंकि इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो रही है बल्कि खुद इसका सेवन करने से उनकी सेहत भी दुरुस्त हो रही है। इसका स्वाद भी हर किसी को पसंद आता है चाहे व शाकाहारी हों या मांसाहारी।
दरअसल इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर और विटामिन पाया जाता है। यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। जानकारों का कहना है कि यह प्राकृतिक मशरूम खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। एंटी-ऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन, विटामिन डी, सेलेनियम और जिंक से भरपूर मशरूम का इस्तेमाल कई तरह की दवा बनाने के लिए भी किया जाता है। खास तौर पर हर्ट व हाई ब्लड प्रेशर की दवाएं इससे बनाई जाती हैं। देश की सबसे महंगी सब्जियों में शुमार जंगली मशरूम दिल और उच्च रक्तचापके रोगियों के लिए काफी मुफीद है। इसमें कैलोरी कम होती है। इस कारण अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाले लोग इसे खाते हैं।
मशरूम में मौजूद पौषक तत्व शरीर को कई खतरनाक बीमारियों से बचा कर रखते हैं। खास तौर पर इसके नियमित सेवन से इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। जानकारों का यहां तक कहना है कि जंगली मशरूम कुपोषित बच्चे के लिए काफी सेहतमंद है। अगर इसे उबालकर नियमित तौर पर बच्चों को पिलाया जाए तो सेहत में जल्द ही सुधार देखने को मिलता है।
आदिवासी बहुल इलाकों व गांवों में कुपोषण सहित अन्य समस्याओं पर सक्रियता से काम करने वाले समाजसेवी यूसुफ बेग की मानें तो जंगल से सटे गांवों में रहने वाले आदिवासी इन दिनों जंगली मशरूम (बोंडी) का संग्रह करने में जुटे हैं। सुबह के समय बडौर गांव जाते वक्त एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना मझगवां रोड पर ग्राम दरेरा-मडैयन के बीच कुछ आदिवासियों का समूह थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बैठे मिल जाएंगे। वहीं पास ही सीताराम गौंड तथा उसका पूरा परिवार बोंडी लिए सड़क के किनारे बैठे मिले। सीताराम की पत्नी ने बताया कि कल आठ सौ रुपये की बोंडी बेची है। इस आदिवासी महिला ने बताया कि इन्हीं जंगलों से मिलने वाली चीजों से परिवार की आजीविका चलती है। सीताराम गौंड बताते हैं कि जंगल से बोंडी एकत्र कर प्रतिदिन यहां पर आकर बेचते हैं। सड़क से गुजरने वाले शहर के लोग खरीद लेते हैं। उन्होंने बताया कि ये बोंडी 200 रुपये किलो या 50 रूपये मूठा तक बिक जाती है और जो बच जाती है उसे सपरिवार खा लेते हैं।
घने जंगलों से आच्छादित विंध्य क्षेत्र में इन दिनों जंगली मशरूम (बोंडी) आदिवासी परिवारों की आजीविका का सहारा बनी है। बारिश के मौसम में प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाली यह जंगली सब्जी अपने पौष्टिक गुणों और स्वाद के कारण दो सौ से लेकर तीन सौ रुपये तक बिकती है। कोरोना काल में जब रोजी रोजगार पर हर तरफ संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे आड़े वक्त में जंगल ही गरीब आदिवासियों का सहारा बने हुए हैं। जंगल में बारिश के समय पाई जाने वाली इस मशरूम को बुंदेलखंड क्षेत्र में बोंडी कहते हैं जो सावन भादों में बादल गरजने के बाद बामी से निकलते हैं। खाने में अत्यधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक होने के कारण इस जंगली सब्जी की खासी मांग रहती है।
इलाकाई लोग बताते हैं कि जंगली मशरूम का उपयोग करने में सावधानी भी रखना चाहिये क्योंकि इनकी कई किस्में जहरीली होती हैं जो कभी-कभी खाने पर जानलेवा भी साबित होती हैं।

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