बायोगैस सहभागिता योजना की घोषणा मुख्यमंत्री ने बजट में की थी। इसके तहत चयनित गोशालाओं में 100 घनमीटर या अधिक क्षमता के बायोगैस प्लांट लगाए जाने थे, लेकिन जिले में एक भी गोशाला को इसका लाभ नहीं मिल पाया। इसका लाभ लेने के लिए गोशाला में एक हजार गोवंश होना अनिवार्य था, लेकिन जिले में इस नियम के दायरे में एक भी गोशाला नहीं आ रही है। जिले में कुल 20 गोशालाएं संचालित हंै। इनमें 16 पंजीकृत एवं 4 अपंजीकृत है। बहरावंडा कला की रामदेव गोशाला में सर्वाधिक 641 गोवंश है। शहर की राधा-कृष्ण गोशाला में 541 गोवंश है।
ये है उद््देश्य
बायोगैस प्लांट लगाने के पीछे उद््देश्य गोवंश के गोबर का उपयोग करना है। वहीं जैविक खाद में प्लांट का भी उपयोग किया जा सकेगा। पशुपालन विभाग की ओर से गोशालाओं में बायोगैस प्लांट की स्थापना के लिए कुल लागत का 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। अनुदान प्राप्त करने के लिए गोशाला के पास 25 बीघा भूमि भी होना चाहिए। संयंत्र संचालन के लिए पानी व गोबर की उपलब्धता होनी चाहिए। वहीं 31 मार्च 2016 से पूर्व गोशालाओं का पंजीयन होना चाहिए। बायो गैस के लिए लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 40 लाख रुपए का अनुदान देय है।
‘सुरक्षा को आबादी की चुनौती
गंगापुरसिटी . बेहतर तालीम देने के लिए मिनी कोटा के रूप में पहचान बना रहा गंगापुरसिटी आबादी के बोझ तले तब रहा है, लेकिन इस आबादी की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली खाकी नफरी के मामले में फिसड्डी साबित हो रही है। शहर की आबादी जिला मुख्यालयों के आंकड़ों को मात दे रही है, लेकिन आबादी की सुरक्षा का ख्याल अभी कागजों तक ही सिमटा है। इस आबादी की सुरक्षा का जिम्मा महज एक थाने पर है। हालांकि अधिकारी स्तर इस क्षेत्र में सजगता देखी जा रही है। उपखंड स्तर से इतर यहां अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक का पद सृजित है, लेकिन नफरी के लिहाज से पुलिस को कतई सहूलियत नहीं मिल सकी है। आबादी और अपराध के लिहाज से सरकारी स्तर पर यहां उदेई थाना प्रस्तावित है, लेकिन इसके खुलने की कवायद पूरी नहीं हो सकी है। ऐसे में दो थानों के काम का बोझ एक ही थाना उठा रहा है।
गंगापुरसिटी . बेहतर तालीम देने के लिए मिनी कोटा के रूप में पहचान बना रहा गंगापुरसिटी आबादी के बोझ तले तब रहा है, लेकिन इस आबादी की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली खाकी नफरी के मामले में फिसड्डी साबित हो रही है। शहर की आबादी जिला मुख्यालयों के आंकड़ों को मात दे रही है, लेकिन आबादी की सुरक्षा का ख्याल अभी कागजों तक ही सिमटा है। इस आबादी की सुरक्षा का जिम्मा महज एक थाने पर है। हालांकि अधिकारी स्तर इस क्षेत्र में सजगता देखी जा रही है। उपखंड स्तर से इतर यहां अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक का पद सृजित है, लेकिन नफरी के लिहाज से पुलिस को कतई सहूलियत नहीं मिल सकी है। आबादी और अपराध के लिहाज से सरकारी स्तर पर यहां उदेई थाना प्रस्तावित है, लेकिन इसके खुलने की कवायद पूरी नहीं हो सकी है। ऐसे में दो थानों के काम का बोझ एक ही थाना उठा रहा है।