10 साल बाद भी पूरा नहीं हुआ स्टाफ
10 वर्ष पूर्व तत्कालीन गहलोत सरकार में विधायक अलाउद्दीन आजाद के प्रयासों से स्थानीय अस्पताल प्राथमिक से सामुदायिक स्तर पर क्रमोन्नत हुआ। अस्पताल का नाम बड़ा हो गया, लेकिन सुविधाएं आज भी प्राथमिक स्तर की हैं। यहां पांच चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन आज भी यहां केवल दो ही चिकित्सक कार्यरत हैं। क्रमोन्नति के बाद से ही यहां चिकित्सकों के स्वीकृत पदों पर नियुक्ति को लेकर ग्रामीण मौजूदा सत्ताधारी नेताओं के दरबार में अर्जी देते रहे, लेकिन हर बार आश्वाशन से आगे बात नहीं बढ़ी। चाहे कांग्रेस विधायक अलाउद्दीन आजाद रहे हो या पर बीजेपी विधायक दिया कुमारी।
अब नए विधायक से लोगों को उम्मीद है कि उनकी नजर अस्पताल की अव्यवस्थाओं पर पड़ेगी और स्थानीय सरकारी अस्पताल राजनीतिक अनदेखी की बीमारी से उभरेगा। अस्पताल में पूरे चिकित्सक होंगे और लोगों को इसका नाम के अनुरूप लाभ मिल सकेगा। हालांकि यह वक्त ही बताएगी नए विधायक चिकित्सा विकास पर लोगों की उम्मीद पर कितना खरा उतरते हैं।
1935 से है संचालित
गांव के बुजुर्गों के अनुसार मलारना डूंगर में 1935 से सरकारी अस्पताल संचालित है। 1947 में अस्पताल के लिए सरकारी भवन बना। आज भी उसी स्थिति में। डेढ़ वर्ष पूर्व नए भवन का कार्य शुरू हुआ। अभी पूरा होने में लगेंगे दो वर्ष।
यह है स्टाफ की स्थिति
चिकित्साधिकारियों के 5 पद स्वीकृत हैं। दो चिकित्सक कार्यरत। महिला रोग विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ व एक फिजिशियन के पद रिक्त हैं। एएनएम के दोनों पद रिक्त हैं। एक सेनेट्री इंस्पेक्टर का भी पद रिक्त है। नाइट ड्यूटी पर तैनात चिकित्सा कर्मियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं। रोगियों के साथ वार्ड में रहने को विवश। चिकित्सा प्रभारी के सरकारी कार्य से बाहर जाने पर होती परेशानी।स्थानीय पूर्व सरपंच फिरदौस बानो ने बताया कि स्थानीय अस्पताल में महिला रोग विशेषज्ञ नहीं होने से महिला रोगियों को सर्वाधिक परेशानी होती है। मामूली बीमारी होने पर महिलाओं को अन्यंत्र जाना पड़ता है। यही स्थिति बाल रोगियों की भी है।
तीन चिकित्सकों के पद रिक्त हैं। ओपीडी अधिक है। परेशानी तो होती ही है। विशेष कर जब जरूरी कार्य या सरकारी काम से बाहर जाते है तो रोगियों को भी परेशानी होती है। उच्च अधिकारियों को भी अवगत करा रखा है। फिर भी काम तो चला ही रहे है।
डॉ. सैयद सुहेल अली, चिकित्सा प्रभारी सीएचसी मलारना डूंगर