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आखिर क्यों रखा प्लूटो ग्रह पर मिले 20 हज़ार फ़ीट ऊंचे पर्वत का नाम तेनज़िंग नोर्गे

91 साल पहले इसी महीने में खोजा गया था यह बौना ग्रह, 2006 में ग्रहों की सूची से हुआ बाहर, 2019 में नासा चीफ ने फिर से किया ग्रहों की सूची में शामिल

जयपुरFeb 13, 2021 / 04:12 pm

Mohmad Imran

आखिर क्यों रखा प्लूटो  ग्रह पर मिले 20 हज़ार फ़ीट ऊंचे पर्वत का नाम तेनज़िंग नोर्गे

आखिर क्यों रखा प्लूटो ग्रह पर मिले 20 हज़ार फ़ीट ऊंचे पर्वत का नाम तेनज़िंग नोर्गे

प्लूटो (Pluto) एक बौना ग्रह (dwarf planet) है। प्लूटो की खोज 1930 में अमेरिकी वैज्ञानिक क्लाइड डब्यू टॉमबॉग ने की थी। यह बौना ग्रह भी अन्य ग्रहों की तरह ही सूर्य की परिक्रमा करता है। लेकिन यह आकार में बहुत छोटा है। इसकी खोज इसी महीने यानी 18 फरवरी को हुई थी। यह बौना ग्रह ग्रह होने की तीसरी शर्त पर खरा नहीं उतरता है, क्योंकि सूर्य की परिक्रमा के दौरान इसकी कक्षा नेप्चून की कक्षा से टकराती है। पहले इसे ग्रह मान लिया गया था लेकिन 2006 में वैज्ञानिकों ने इसे ग्रहों की श्रेणी से बाहर कर दिया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब इस ग्रह नाम रखने के लिए सुझाव मांगे गए तो 11वीं में पढ़ने वाली एक लड़की ने इसे प्लूटो नाम दिया था।
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90 साल में सिर्फ एक स्पेस मिशन गया
रोम में अँधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं और इस ग्रह पर भी हमेशा अँधेरा रहता है, इसलिए इसका नाम प्लूटो रखा जाए। प्लूटो को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 248 साल लग जाते हैं। वहीं जिस तरह से हमारे यहां एक दिन 24 घंटे का होता है, ठीक उसी तरह से प्लूटों में यह 24 घंटे 153.36 घंटों के बराबर होता है। यानी यहां दिन रात के में करीब 6 दिन लगते हैं। प्लूटो ग्रह इतना छोटा है कि यह किसी दूसरी ग्रह की कक्षा पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता है। प्लूटो ग्रह की खोज वैज्ञानिकों की एक गलती से हुई थी जब वे यूरेनस और नेपच्यून की गति के आधार पर गणना कर रहे थे। वैज्ञानिक क्लायड टामबाग़ (Clyde Tombaugh) ने आकाश का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया और प्लूटो ग्रह को 18 फरवरी 1930 को खोज निकाला था। अभी तक प्लूटो ग्रह पर सिर्फ एक अंतरिक्ष यान न्यू हरिजन (New Horizons) पहुंचा है जिसे 19 जनवरी 2006 को लांच किया गया था। 14 जुलाई 2015 को यह प्लूटो के निकट से गुजरा था। इसने प्लूटो ग्रह की अनेक तस्वीरें ली थी और गणना की थी। तस्वीरों को देखकर यह पता चलता है कि प्लूटो पर कई बर्फीले पर्वत हैं। इसके साथ ही प्लूटो का आकार उससे बड़ा है जितना इसका अनुमान लगाया गया था। अभी तक प्लूटो ग्रह के पांच चंद्रमा (उपग्रह) – Styx or P5, Kerboros or P4, Hyrda and Nix, Charan खोजें जा चुके हैं।

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पृथ्वी के महासागरों की तुलना में 3 गुना अधिक पानी
प्लूटो सौर मंडल के 7 उपग्रहों से छोटा है। यह पृथ्वी के उपग्रह – चंद्रमा के व्यास का 65% और द्रव्यमान का मात्र 18% है। प्लूटो ग्रह का 1 साल (सूर्य की परिक्रमा करने की अवधि) पृथ्वी के 246.04 साल के बराबर होता है। प्लूटो की सूर्य से दूरी 587 करोड 40 लाख किलोमीटर है। इसका व्यास 2372 किलोमीटर है। प्लूटो का द्रव्यमान 13050 अरब किलोग्राम है। प्लूटो को 24 अगस्त 2006 में अंतरराष्ट्रीय खगोल संगठन (IAU) ने ग्रहों के वर्ग से निकाल दिया है और इससे “बौने ग्रह” का दर्जा दिया है। इस संगठन का कहना है कि प्लूटो अन्य ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा एक ही पथ पर नहीं करता है। इस कारण इससे ग्रह का दर्जा वापस ले लिया गया है। खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार ग्रह उसे कहते हैं जो सूर्य की परिक्रमा अपनी निश्चित कक्षा में करता है और अन्य उपग्रहों को अपनी कक्षा में मंजूरी देता है। हालांकि 2019 में इसे फिर से ग्रहों की सूची में दाल दिया गया। प्लूटो तक सूर्य के प्रकाश को पहुंचने में साढ़े 5 घंटे लगते हैं। यदि पृथ्वी पर आपका वजन 45 किलो है तो प्लूटो पर आपका वजन 3 किलो होगा। प्लूटो का एक तिहाई हिस्सा पानी है। यह पानी बर्फ के रूप में जमा हुआ है। यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले महासागरों की तुलना में 3 गुना अधिक है। प्लूटो का शेष दो तिहाई भाग चट्टाने हैं। इसमें कई पर्वत श्रृंखलाएं और गहरे गड्ढे हैं। प्लूटो से आकाश बहुत अंधकारमय लगता है। आप दिन में भी तारे देख सकते हैं।

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प्लूटो के बर्फीले पर्वत का नाम तेनज़िंग नोर्गे
छह साल पहले नासा के न्यू होराइजन्स प्रोब के अंतरिक्ष मिशन पर रवाना होने के बाद नासा और आईएयू ने एक नामकरण योजना तैयार की जो सुदूर अंतरिक्ष की गहराइयों और खोज की यात्राओं पर केंद्रित थी। उन्होंने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि किसी भी ग्रह पर मिलने वाले पहाड़ों का नाम ऐतिहासिक खोजकर्ताओं के नाम पर रखा जाएगा। वहीं इसके चंद्रमा पर मिलने वाले काले धब्बे और मैदान अंतरिक्ष अभियानों के नाम पर रखे जाएंगे। इसी के चलते प्लूटो पर पाए गए 20 हजार फीट ऊंचे बर्फ के पहाड़ का नाम नेपाली पर्वतारोही तेंजिंग नोर्गे (Tenzing Norgay) के नाम पर रखा गया है। ऐसे ही इसके चंद्रमा पर पाए गए काले धब्बों का नाम हॉलीवुड फिल्म लॉर्ड ऑफ द रिंग्स (hollywood film Lord of The Rings) के पात्र ‘मोरडोर’ के नाम पर रखा गया है। एक बार नाम चुन लिए जाने पर इसे बदला नहीं जा सकता।

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ऐसे रखते हैं ग्रहों, उपग्रहों और चंद्रमाओं के नाम
अंतरिक्ष में खगोलविज्ञानियों के खोजे नए ग्रहों, क्षुद्रग्रहों, उल्कापिंडों और तारों व आकाशगंगाओं के नाम वही क्यों रखा गया जिस नाम से हम आज इन्हें पहचानते हैं? दरअसल, अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) 1919 से सौर मंडल के ग्रह और उपग्रहों के अलावा नए खोजे जाने वाले खगोलीय पिंडो का नामकरण करने में आधिकारिक भमिका निभाता है। खगोलविज्ञानी भी संघ के दिशा निर्देशों का बारीकी से पालन करते हैं। संघ की बताई गाइडलाइन के अनुसार ही नामकरण किया जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी चंद्र खगोलवेत्ता ने चंद्रमा पर किसी नई चोटी की खोज की है तो उसका नाम किसी भू-विज्ञानी के नाम पर रखा जाएगा। ऐसे ही शनि ग्रह के उपग्रह टाइटन पर अगर किसी नई स्थलाकृति की खोज होती है तो उसका नाम फंतासी या विज्ञान कथा के आधार पर नामकरण किया जाएगा। इसी प्रकार अगर ब्रहस्पति ग्रह के किसी नए चंद्रमा की खोज होती है तो उसका नाम अग्नि, ज्वालामुखी या 18वीं शताब्दी के इटैलियन साहित्यकार-कवि दांते की कविता इन्फर्नो पर आधारित होना चाहिए।

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भ्रम से बचने के लिए बनाए कड़े नियम
ब्रहस्पति के नए खोजे गए चंद्रमाओं का नाम ग्रीक या रोमन पौराणिक कथाओं में वर्णित किसी एक चरित्र से आना चाहिए। इसके अलावा नाम 16 वर्ण या उससे कम का होना चाहिए। इसके अलावा यह अपमानजनक (ऑफेंसिव), व्यवसासिक और बीते 100 वर्षों में किसी भी राजनीतिक, सैन्य या धार्मिक गतिविधियों के लिए उपयोग न किया गया हो। साथ ही नाम किसी जीवित व्यक्ति और वर्तमान में मौजूद किसी भी चंद्रमा या क्षुद्रग्रह के नाम से मिलता-जुलता भी नहीं होना चाहिए। सबसे अहम बात यह है कि अगर चंद्रमा अपने संबंधित ग्रह की घूर्णन दिशा में ही गतिमान है तो इसका नाम ए पर खत्म होना चाहिए और अगर यह ग्रह की विपरीत दिशा में घूमता है तो इस सूरत में नाम ई पर समाप्त होना चाहिए। खगोलविद स्कॉट शेफर्ड का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ के मापदंडों को पूरा करने वाले पौराणिक कथाओं के पात्रों की संख्या सीमित हैं। उनके अनुसार वर्तमान में ई शब्द पर समाप्त होने वाले नाम चलन से बाहर हैं। हार्वर्ड स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के खगोलशास्त्री गैरेथ विलियम्स का कहना है कि ब्रह्मांड के गहन अध्ययन के दौरान किसी भी प्रकार की भ्रम की स्थिति से बचने के लिए ये कड़े नियम बनाए गए हैं। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में संघ के अस्तित्त्व में आने से पहले तक सौर मंडल का अध्ययन भ्रम और गड़बडिय़ों से भरा हुआ था। अक्सर नए ग्रहों और तारों के नामकरण को लेकर अंतरराष्ट्रीय विवाद व राजनीतिक खींचतान भी शुरू हो जाती है।

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