विज्ञान में अपनी रुचि के कारण वे ग्लासगो रॉयल इन्फर्मरी में हिस्टोपैथोलॉजी में एक प्रयोगशाला तकनीशियन बन गईं । लंदन में अपने कॅरियर को आगे बढ़ाने के बाद उन्होंने ओंटारियो कैंसर संस्थान में एक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के साथ नएवायरसों की खोज करनी शुरू की। अपने असाधारण कौशल के साथ उन्होंने एक ऐसा तरीका विकसित किया जो एंटीबॉडीज का उपयोग करके उन्हेंएक जगह एकत्र कर बेहतर ढंग से वायरस को देखने में मदद करता था। लंदन स्थित सेंट थॉमस अस्पताल वही अस्पताल है जहां हाल ही ब्रिटेन के वर्तमान प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का कोरोना से संक्रमित होने के बाद उपचार किया गया है।
उस समय डॉ. डेविड टायरेल विल्टशायर के सैलिसबरी में सामान्य सर्दी-जुकाम पर शोध कर रहे थे। उन्होंने पाया कि वे सामान्य सर्दी से जुड़े कुछ वायरस विकसित करने में सक्षम थे, लेकिन सभी नहीं। विशेष रूप से एक नमूना जिसे उन्होंने बी 814 कहा वहउसे देख नहीं पा रहे थे। तब उन्होंने इम्यून-इलेक्ट्रॉन-माइक्रोस्कोपी में विशेषज्ञ डॉ. जून की सहायता ली। डॉ. डेविडके भेजे नमूनों की जांच करने के बाद डॉ. जून ने बी 814 को इन्फ्लूएंजा वायरस की तरह बताया। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह इन्फ्लूएंन्जा से काफी हद तक अलग भी है। उनकी इस खोज को पहले मानव कोरोनावायरस के रूप में जाना गया। डॉ. जून वे पहली वैज्ञानिक थीं जिन्होंने ऐसी संरचनाएं देखी थीं जब वह चूहे के हेपेटाइटिस और संक्रामक ब्रोंकाइटिस की जांच कर रही थी। डॉ। जून द्वारा ली गईं इन तस्वीरों को दो साल बाद जनरल वायरोलॉजी में प्रकाशित किया गया था। 2007 में 77 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।