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Lancet study: टाइफाइड बुखार हुआ और खतरनाक, एंटीबायोटिक भी हो रहा अब बेअसर, भारत के लिए बढ़ा रिस्क

Published: Jun 22, 2022 08:15:40 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

Typhoid: टाइफाइड से जुड़े एक शोध में खुलासा हुआ है कि ये अब और खतरनाक हो चुका है। इसने इलाज के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ड्रग के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है।

 Lancet study Typhoid bacteria increasingly resistant to key drugs, flags India risk

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टाइफाइड बुखार अब पहले से और खतरनाक हो गया है। जिस बैक्टीरिया के कारण ये बुखार होता है उसने एंटीबैक्टीरियल ड्रग के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। बुधवार को लैंसेट की स्टडी में इसका खुलासा हुआ है। पिछले 30 वर्षों में भारत और अन्य देशों में मौजूद इस बैक्टीरिया में ड्रग के खिलाफ प्रतिरोधक विकसित हो चुकी है जो भविष्य में इस बुखार के इलाज में बड़ी समस्या पैदा कर सकता है।
टाइफाइड के बैक्टीरिया का नाम साल्मोनेला टाइफी (Salmonella Typhi) है जो गन्दा पानी पीने या खाने के कारण किसी व्यक्ति को संक्रमित करता है। इसी को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे अधिक इस्तेमाल जब टाइफाइड इंफेक्शन बढ़ जाने पर उसे ठीक करने के लिए किया जाता है।

स्टडी के अनुसार, भारत, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान से वर्ष 2014-2019 के बीच टाइफाइड के मरीजों से करीब 3489 साल्मोनेला टाइफी (Salmonella Typhi) के सैंपल लिए गए थे।

एक और सैंपल 1905-2018 कर बीच करीब 70 से अधिक देशों से 4169 सैंपल लिये गए थे। साल्मोनेला टाइफी के जीनोम सिक्वेंसिंग का डाटा निकाला गया। इसके बाद दोनों के आंकड़ों को निकालने के बाद उनका विश्लेषण किया गया और फिर रिपोर्ट बनाई गई।
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स्टडी में पाया गया कि लगभग सभी साउथ एशिया देशों में 1990 के बाद से 200 मामले ऐसे थे जिनमें बैक्टीरिया ने ड्रग के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली थी।

स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी के जैसन एंड्रू नाम के एक शोधकर्ता ने जानकारी देते हुए कहा, ‘जिस गति से इस बैक्टीरिया ने प्रतिरोधक क्षमता को विकसित किया है वो बेहद चिंताजनक है। इससे इन देशों में किसी भी तरह के रिस्क को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है। ये बैक्टीरिया पूरी दुनिया में फैला है इसलिए ये आंकड़े वैश्विक चिंता का विषय है।’

बता दें कि साउथ एशिया में टाइफाइड के मामले गन्दा पानी पीने और दूषित खाना खाने के कारण फैलता है। इससे हर साल करीब 1 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं और 1 लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं। दुनियाभर में अकेले साउथ एशिया से 70 फीसदी मरीज सामने आते हैं।

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