नई दिल्ली। अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि विकासशील देशों में परंपरागत मिट्टी के चूल्हों में धातु की एक सस्ती प्लेट लगाकर उनसे निकलने वाले धुएं की मात्रा कम की जा सकती है जिससे हजारों महिलाएं और बच्चे प्रदूषण के खतरे से बचेंगे और वैश्विक ताप वृद्धि पर भी लगाम लग सकेगी। अनुसंधानकर्ताओं ने इस धातु की प्लेट को मेवाड़ अंगीठी का नाम दिया है। स्टील की चौकोर प्लेट में कई छेद कर के उसे मेवाड़ अंगीठी का रूप दिया जाता है। परंपरागत मिट्टी के चूल्हे में मेवाड़ अंगीठी लगा कर उसके ऊपर लकड़ी जलाने से चूल्हे की क्षमता बढऩे के साथ-साथ उस से उत्सर्जित होने वाले धुएं में भी काफी कमी आती है।
आयोवा विश्वविद्यालय में मैकेनिकल और इंडस्ट्रियल इंजीनियङ्क्षरग के प्रोफेसर एचएस उदय कुमार ने इस अंगीठी पर शोध किया है। उन्होंने राजस्थान में अपने कई सप्ताह के प्रवास के दौरान जलावन की मात्रा कम करने पर अध्ययन किया।अपने अध्ययन के दौरान प्रोफेसर उदयकुमार ने पाया कि मेवाड़ अंगीठी के इस्तेमाल के दौरान नीचे से हवा का प्रवाह होता है जिससे जलती लकड़ी और राख अलग हो जाती है जिससे इसकी क्षमता बढ़ जाती है।
शोधकर्ताओं ने पाया की इस धातु के उपयोग से लकड़ी की खपत में 60 प्रतिशत की कमी आयी और धुएं की मात्रा भी काफी कमी हो गई। इस अंगीठी का परीक्षण देश की एक राष्ट्रीय प्रयोगशाला में भी किया गया जहां ये देखा गया की इसके इस्तेमाल से कालिख के उत्सर्जन में 90 प्रतिशत की कमी आयी। सबसे खास बात यह है कि चूल्हे में लगने वाली इस धातु की प्लेट की कीमत महज 65 रुपये है।
विश्व स्वास्थ संगठन के आकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में ढाई अरब लोग आज भी परंपरागत चूल्हों मेें लकडिय़ां जलाकर खाना बनाते हैं और लगभग 40 लाख लोग खाना बनने प्रक्रिया के दौरान होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण के कारण कई बीमारियों की चपेट में आकर समय से पहले मर जाते हैं। प्रोफेसर उदयकुमार ने कहा कि राजस्थान में लगभग दो हजार चूल्हों में धातु की ऐसी अंगीठी लगायी गई है। ठंड के मौसम में इस पर और अधिक शोध किया जाएगा।
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