रिसर्च के शुरुआती दौर में जो नतीजे आये उसमें यह दावा किया गया है कि ईंधन के रूप में उपयोग होने वाली हाइड्रोजन गैस के उत्पादन में प्रति यूनिट सात रुपये का खर्च आ रहा है। अगर सरकार इसे प्रोत्साहित करती है तो बड़े पैमाने पर उत्पादन हो सकता है, इससे देश में बिजली के लिए खपत बढ़ाकर इस समस्या को दूर किया जा सकता है। यही नहीं, इसे रॉकेट में उपयोग होने वाले ईंधन के सस्ते विकल्प के रूप में भी विकसित किया जा सकता है, आज ज़रूरत है सरकार इस प्रोजेक्ट पर ध्यान दे तो ये ऊर्जा का बड़ा विकल्प बन सकता है।
प्रो.दुलारी की माने तो गाय के गोबर और गोमूत्र से मिलने वाली ऊर्जा (मीथेन) का उपयोग चार पहिया वाहन चलाने, बिजली के लिए हो रहा है, पर इससे प्राप्त हाइड्रोजन गैस को उच्च गुणवत्ता के ईंधन के रूप में विकसित किया जाए तो इसका इस्तेमाल रॉकेट के प्रोपेलर में ईंधन के रूप में हो सकता है। इस प्रोजेक्ट पर तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थित महर्षि वाग्भट्ट गोशाला व पंचगव्य विज्ञान केंद्र में गोमूत्र और गोबर से हाइड्रोजन गैस के उत्पादन पर रिसर्च चल रहा है, हमारी सरकार अगर इस पर ध्यान दे तो वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में यह बड़ा कारगर सिद्ध हो सकता है। देश में गाय,गोबर और गोमूत्र की कमी नहीं है। क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन के लिए सबसे सस्ता और उपयुक्त ईंधन के रूप में यह बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है।