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वैज्ञानिकों ने खोज लिया गंगाजल का रहस्य, बताया सचमुच चमत्कारी है गंगा का पानी

गंगा के पानी के जादुई असर से वो हैरान रह गए।

नई दिल्लीDec 06, 2017 / 04:59 pm

Ravi Gupta

ganga

नई दिल्ली। बहुत लोग आपको गंगा की ख़ूबियां बताते मिल तो जाते ही होंगे। लोग कहते हैं गंगा का पानी कभी ख़राब नहीं होता है। इसमें कीड़े नहीं पड़ते, इसमें से कभी बदबू नहीं आती, गंगा मैया पर हम ने इतने ज़ुल्म किए हैं गंगा को गन्दा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसमें नाले निकाले जाते हैं, लाशें फेंकीं जाती हैं, कचरा डाला जाता है, लेकिन गंगा के पानी की तासीर जैसी की तैसी रही है। असलियत में गंगा के पानी के कभी ना ख़राब होने की वजह हैं वायरस। जी हां, गंगा जल में कुछ ऐसे वायरस पाए जाते हैं, जो इसमें सड़न पैदा नहीं होने देते हैं। इस तर्क को साबित करने के लिए आपको क़रीब सवा सौ साल पीछे जाना पड़ेगा। 1890 के दशक में मशहूर ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैन्किन गंगा के पानी पर रिसर्च कर रहे थे। जिस समय की यह बात है उस समय हैजा फैला हुआ था। लोग मरने वालों की लाशें लाकर गंगा नदी में फेंक कर जाते थे। हैन्किन को डर था कि कहीं गंगा में नहाने वाले दूसरे लोग भी हैजा के शिकार ना हो जाएं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था। हैन्किन हैरान थे क्योंकि इससे पहले उन्होंने देखा था कि यूरोप में गंदा पानी पीने की वजह से दूसरे लोग भी बीमार पड़ जाया करते थे, मगर गंगा के पानी के जादुई असर से वो हैरान रह गए।

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हैन्किन के इस रिसर्च को 20 साल बाद एक फ़्रेंच वैज्ञानिक ने आगे बढ़ाया। उस वैज्ञानिक ने जब रिसर्च को आगे बढ़ाया की तो पता चला कि गंगा के पानी में पाए जाने वाले वायरस, कॉलरा फैलाने वाले बैक्टीरिया में घुसकर उन्हें नष्ट कर देते थे। यह वायरस ही गंगा के पानी की शुद्धता बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार थे। इन्हीं की वजह से नहाने वालों के बीच हैजा नहीं फैल रहा था। यानी बैक्टीरिया पर बसर करने वाले यह वायरस इंसान के लिए बहुत मददगार साबित हुए। आज के समय के रिसर्चर इन्हें निंजा वायरस कहते हैं। यानी वह वायरस जो बैक्टीरिया को मार डालते हैं।

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आज से क़रीब एक सदी पहले मेडिकल दुनिया में एंटीबॉयोटिक की वजह से इंक़लाब आया था। चोट, घाव या बीमारी से मरते लोगों के लिए एंटिबॉयोटिक वरदान साबित हुआ। इन्हीं की मदद से वैज्ञानिकों ने कई बीमारियों पर क़ाबू पाया। मगर हाल के दिनों में यह देखा जा रहा है कि बहुत से बैक्टीरिया पर एंटिबॉयोटिक का असर ख़त्म हो चुका है। आज दुनिया भर में सैकड़ों हज़ारों लोग ऐसे बैक्टीरिया की वजह से मर रहे हैं। 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 2050 तक एंटीबॉयोटिक का असर इतना कम हो जाएगा कि दुनिया भर में क़रीब एक करोड़ लोग इन बैक्टीरिया की वजह से मौत के मुह में चले जाएंगे। आज की तारीख़ में इतने लोग कैंसर से मरते हैं। यह वायरस ख़तरनाक बैक्टीरिया को चट करने का काम करता है। विज्ञानिक इसके ऊपर और शोध कर रहे ताकी इसके और लाभ खोजे जा सकें।

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