हैन्किन के इस रिसर्च को 20 साल बाद एक फ़्रेंच वैज्ञानिक ने आगे बढ़ाया। उस वैज्ञानिक ने जब रिसर्च को आगे बढ़ाया की तो पता चला कि गंगा के पानी में पाए जाने वाले वायरस, कॉलरा फैलाने वाले बैक्टीरिया में घुसकर उन्हें नष्ट कर देते थे। यह वायरस ही गंगा के पानी की शुद्धता बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार थे। इन्हीं की वजह से नहाने वालों के बीच हैजा नहीं फैल रहा था। यानी बैक्टीरिया पर बसर करने वाले यह वायरस इंसान के लिए बहुत मददगार साबित हुए। आज के समय के रिसर्चर इन्हें निंजा वायरस कहते हैं। यानी वह वायरस जो बैक्टीरिया को मार डालते हैं।
आज से क़रीब एक सदी पहले मेडिकल दुनिया में एंटीबॉयोटिक की वजह से इंक़लाब आया था। चोट, घाव या बीमारी से मरते लोगों के लिए एंटिबॉयोटिक वरदान साबित हुआ। इन्हीं की मदद से वैज्ञानिकों ने कई बीमारियों पर क़ाबू पाया। मगर हाल के दिनों में यह देखा जा रहा है कि बहुत से बैक्टीरिया पर एंटिबॉयोटिक का असर ख़त्म हो चुका है। आज दुनिया भर में सैकड़ों हज़ारों लोग ऐसे बैक्टीरिया की वजह से मर रहे हैं। 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 2050 तक एंटीबॉयोटिक का असर इतना कम हो जाएगा कि दुनिया भर में क़रीब एक करोड़ लोग इन बैक्टीरिया की वजह से मौत के मुह में चले जाएंगे। आज की तारीख़ में इतने लोग कैंसर से मरते हैं। यह वायरस ख़तरनाक बैक्टीरिया को चट करने का काम करता है। विज्ञानिक इसके ऊपर और शोध कर रहे ताकी इसके और लाभ खोजे जा सकें।