इसलिए जरूरी है धूलकण हटाना
प्रमुख शोधकर्ता बेंजामिन फर्र का कहना है कि दरअसल, चांद पर मौजूद धूलकण सूरज की तेज रोशनी और विकरण (Sun Radiation) से विद्युत कणों (Electrically Charged Particals) में बदल जाते हैं जो स्पेस सूट पर चिपकने पर उसके महत्त्वपूर्ण कलपुर्जों और संचार व्यवस्था (Communication Systems) को ठप कर सकते हैं। शोध के एक अन्य वैज्ञानिक झू वांग का कहना है कि डस्टबस्टर तकनीक सतह पर मौजूद 75 से 85 फीसदी धूलकणों को साफ करने में सक्षम है। चांद की सतह पर भी यह तकनीक काम कर सकती है जिससे अंतरिक्ष और चांद के वातावरण में मौजूद किसी भी अज्ञात बैक्टीरिया से अंतरिक्ष यात्रियों को बचाया जा सकेगा। फर्र का कहना है कि अभी भी इस पर काफी काम किया जाना बाकी है लेकिन शुरुआती निष्कर्ष बताते हैं कि इलेक्ट्रॉन-बीम डस्टबस्टर्स भविष्य में चांद पर जाने वाले यात्रियों के बहुत काम आएगा।
पहले भी बन चुके समस्या
गौरतलब है कि पूर्व में भी कई नासा और अन्य देशों के अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद की धूल के उपकरणों और सूट के अहम संचार पुर्जों पर जमने और उनके खराब हो जाने या संपर्क टूट जाने जैसे शिकायतें की हैं। यह धूल इतनी बारी होती है कि बार-बार ब्रश से साफ करने के बाद भी नहीं हटती है। 1972 में अपोलो 17 (NASA’s Lunar Mission Appolo 17) के चंद्र मिशन पर गए हैरिसन जैक श्मिट (Harrison Jack Shimit) को इससे भयानक एलर्जी हो गई। उन्होंने बताया कि इस धूल से चले हुए बारूद (Used Gun powder) जैसी गंध आती है।