बताया जा रहा है कि यूएसए ( America ) के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी जो अरकंसास में स्थित है, वहां के वैज्ञानिकों ने आरगोन नेशनल लैब में रिसर्च के दौरान समुद्र के खारे पानी से हाइड्रोजन फ्यूल बनाया है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि खारे-पानी से इलैक्ट्रिकल करंट को पास करने पर ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के हिस्से कर सकते हैं। जिससे हाइड्रोजन फ्यूल बनता है इसके जरिए ईंधन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिकों ने पाया कि निकेल और लोहे के सूक्ष्म उत्प्रेरकों की मदद से पानी के अलग करने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। विखंडन से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणु अलग हो जाते हैं और फिर इलेक्ट्रॉन से क्रिया कराते हुए हाइड्रोजन गैस बनाई जाती है।
स्टैनफोर्ड रसायन विज्ञान के प्रोफेसर होंगजी दाई (Hongjie Dai) और उनकी टीम ने एक उपकरण बनाया है जिसमें समुद्र के खारा पानी को डालकर उस पर कैमिकल रिएक्शन किया गया। इस दौरान पानी में से ऑक्सीजन और हाईड्रोजन को अलग करने के लिए बिजली की जरूरत थी। जिसे सोलर सैल्स की मदद से पूरा किया गया। इस खोज के बाद समुद्र को नवीकरणीय ऊर्जा का मूल्यवान स्रोत बताया जा रहा है।
दरअसल, ऐसी कई कंपनियां हैं, जिन्होंने हाईड्रोजन फ्यूल से चलने वाली कई तरह की कारों को बनाया है। जो ईंधन के वैकल्पिक रूप ले सकें। इसके साथ ही जर्मनी में भी हाईड्रोजन से चलने वाली रेल गाड़ी चलाई जा चुकी है। वहीं सिंगापुर में प्लेन की शुरूआत कर दी गई है।
प्रोफेसर होंगजी दाई ने बताया है कि आने वाले समय में हाईड्रोजन फ्यूल से गाड़ियों आदि को चलाने में मदद मिलेगी वहीं कैमिकल रिएक्शन के दौरान अलग हुई ऑक्सीजन को भी उपयोग में लाया जा सकेगा। इस तकनीक का अभी बड़े पैमाने पर टेस्ट होना बाकी है लेकिन जैसे रिजल्ट्स इस शोध ने दिए हैं उससे पता लगता है कि अगर बड़े पैमाने पर भी टेस्ट किया जाए तो यह बिल्कुल कारगर साबित हो सकता है।