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विज्ञान और टेक्नोलॉजी

नई खोज : सिर्फ एक चीज के बदलने से ठीक हो सकते हैं फेफड़ों के रोग

बढ़ रहे वायुप्रदुषण से फेफड़ों से संबंधित रोग
वैज्ञानिकों नेे निकाला इस रोग से निपटने का तरीका
इसके जरिए ठीक होगी ये बीमारी

Apr 23, 2019 / 05:49 pm

Navyavesh Navrahi

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नई खोज : सिर्फ एक चीज के बदलने से ठीक हो सकते हैं फेफड़ों के रोग

नई दिल्ली। पर्यावरण ( enviroment ) में लगातार बदलाव के कारण पिछले कुछ वर्षों में सांस से संबंधित मरीजों में वृद्धि हुई है। सांस रोगी इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए तमाम कोशिश करते हैं। अस्पतालों के चक्कर काटते हैं। इसके बावजूद ज्यादातर लोग इन बीमारियों से पीछा नहीं छुड़ा पाते। लेकिन आपको बता दें कि वैज्ञानिकों ने सांस और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों से निजात दिलाने के लिए हाल ही में एक शोध किया है। फिलहाल इसे जानवरों पर किया गया है और सफल रहा है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि आने वाले समय में इस शोध के जरिए इंसानों को नया जीवन मिल सकेगा।
शोध के अनुसार- चूहों में फेफड़े संबंधी घातक रोगों को जड़ से खत्म करने के लिए जन्म से पहले जीन में कुछ बदलाव (एडिटिंग) कर इन्हें बचाया गया है। गौर हो कि फेफड़ों से संबंधित यह बीमारी इतनी घातक है कि जन्म के कुछ समय बाद ही नवजात की जान चली जाती है। साइंस ट्रांसलेशन मेडिसन जर्नल में प्रकाशित वैज्ञानिकों की इस अवधारणा में कहा गया है कि जन्म से पूर्व गर्भाशय ( uterus ) में रहते हुए जीन में किए गए कुछ बदलाव फेफड़ों संबंधी रोगों के उपचार के संबंध में नई राह दिखाते हैं।
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अमरीका ( amrica ) के फिलाडेल्फिया चिल्ड्रन हॉस्पिटल (सीएचओपी) की शोधकर्ता विलियम एच पेरांतेऊ ने इस बारे में कहा- ‘भ्रूण के विकास के दौरान उसके जन्मजात गुण जीन एडिटिंग के लिए अनुकूल बनाते हैं।’ उन्होंने कहा कि जन्म से पहले जीन एडिटिंग करने से रोग से बचाव और उसे कम करने में सहायता मिलती है। गर्भ में ही उसकी विकृतियां ठीक करने की यह प्रक्रिया अपने आप में बेहद रोमांचक है। शोधार्थियों की टीम ने उम्मीद जताई है कि इसके जरिए जन्म से ही फेफड़े स्वस्थ्य रहेंगे।
आकड़ों के मुताबिक चाइल्ड वार्ड ( child ward ) में लगभग 22 प्रतिशत रोगी सांस से संबंधित बीमारी के कारण भर्ती होते हैं। क्योंकि फेफड़ों का सीधा संबंध बाहर के वातावरण से होता है, इसीलिए खराब हुए जीन को ठीक करने के लिए यह थेरेपी सहायक सिद्ध हो सकती है। आम तौर यह देखा जाता है कि सांस और फेफड़ों से संबंधित यह बीमारी सर्फेक्टेंट प्रोटीन की कमी, सिस्टिक फाइब्रोसिस और अल्फा -1 एंटीट्रिस्पिन के कारण होती है।
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अमरीका की पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एडवर्ड ई मौरिसे के अनुसार- यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह कैसे काम करता है। इस तकनीक के जरिए हम कैसे जीन में बदलाव कर सीधे फेफड़ों के वायुमार्ग की उन कोशिकाओं को ठीक कर सकते हैं जो इन रोगों का कारण बनती हैं। इसके बाद शोधकर्ताओं ने दिखाया कि चूहे के भ्रूण के विकास के दौरान एमनियोटिक द्रव (सीआरआइएपीआर) को जीन एडिटिंग के जरिए ठीक समय में गर्भाशय में फैलाया गया। इससे चूहे के फेफड़ों में भी परिवर्तन देखा गया।

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