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विज्ञान और टेक्नोलॉजी

दुनिया में केवल 9 लोगों को है यह जेनेटिक बीमारी

बेटे की दुर्लभ बीमारी का तेज़ी से इलाज ढूंढने के लिए सनथ रमेश ने जेनेटिक बीमारियों के लिए बनाया ऐसा सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म, जिससे कोई भी जुड़कर ऐसी दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों का इलाज ढूंढने में वैज्ञानिकों की मदद कर सकते हैं

जयपुरApr 13, 2021 / 01:42 pm

Mohmad Imran

दुनिया में अब भी ऐसे दुर्लभ रोग और आनुवांशिक विकार हैं जिनका इलाज वैज्ञानिकों दशकों की रिसर्च के बाद भी नहीं खोज पाए हैं। लेकिन उनके प्रयास लगातार जारी हैं। टेक्सास निवासी भारतीय मूल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर सनथ रमेश का तीन साल का बेटा राघव रमेश भी ऐसी ही एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी से पीड़ित है। दरअसल राघव के एक जीन GPX4 में विकार के चलते वह जन्म से ही अपने हाथ और पांव हिलाने में अक्षम है। हैरानी की बात यह है कि राघव को हुआ यह जेनेटिक रोग दुनिया में केवल 9 ही लोगों को है। तब से पिता रमेश एक्सपर्ट्स के चक्कर काट रहे हैं ताकि बेटे के लिए संभावित इलाज ढूंढ सकें। लेकिन अभी तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिल सकी है।
दुनिया में केवल 9 लोगों को है यह जेनेटिक बीमारी

सॉफ्टवेयर की मदद से ढूंढ रहे इलाज
लेकिन पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर रमेश ने हार नहीं मानी और एक गैर-लाभकारी संगठन की मदद से ऐसा सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म विकसित किया है जहां दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों का सामना करने वाले अन्य परिवारों के सदस्य ऐसी बीमारियों इसका इलाज ढूंढने की प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते हैं, वैज्ञानिकों और बायोटेक कंपनियों की मदद कर सकते हैं और विकसित की जा रही दवाओं की प्रगति का आंकलन कर सकते हैं। रमेश ने इस प्लेटफॉर्म को ‘ओपन ट्रीटमेंट्स’ नाम दिया है। उनका यह सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म ऐसे मरीजों और उनके परिवारजनों को एक बायोटेक कंपनी की तरह किसी दुर्लभ आनुवांशिक रोग का इलाज ढूंढने में मदद करता है। उनका लक्ष्य इस प्लेटफॉर्म से 10 हजार से ज्यादा समूहों को जोड़ना है।

दुनिया में केवल 9 लोगों को है यह जेनेटिक बीमारी

मेडिकल वर्ल्ड ने माना बहुमूल्य आईडिया
रमेश के सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म को अमरीका में एक बहुमूल्य आइडिया के तौर पर देखा जा रहा है। उत्तरी कैरोलीना विश्वविद्यालय के जीन थेरेपी शोधकर्ता चैपल हिल का कहना है कि रमेश के इस आइडिया से वास्तव में बीमारी के चलते टूट चुके रोगी संगठनों को सशक्त बनाया जा सकता है। इतना ही नहीं, वे इसकी मदद से अपने स्तर पर कई दुर्लभ बीमारियों के इलाज ढूंढने में मदद कर सकते हैं। यह मैन-पॉॅवर बढ़ाने से भी कहीं ज्यादा है, क्योंकि इसमें सैकड़ों दिमाग और रोगियों का वासतविक डेटा भी शामिल है। रमेश के इस प्लेटफॉर्म को दर्जनों दुर्लभ बीमारियों के लिए बने गैर-लाभकारी समूहों, अनुबंध पर शोध करने वाले संस्थानों, सॉफ्टवेयर ग्रुप्स और बायोटेक कंपनियों का सहयोग मिल रहा है।

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ऐसे काम करता है सॉफ्टवेयर
एक जैसे रोगियों का कोई भी समूह सॉफ्टवेयर पर अपना अकाउंट बनाकर इससे जुड़ सकता है। यहां उन्हें कुछ काम दिए जाते हैं- जैसे उनसे जुड़ी दुर्लभ बीमारी के संबंध में इंटरनेट पर मौजूद तमाम जानकारी जुटाना, विशेषज्ञ ढूंढना, फंड जुटाना और प्रायोगिक परीक्षण करवाना। फिलहाल ओपन ट्रीटमेंट (https://www.opentreatments.org/) से निशुल्क जुड़ा जा सकता है।

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बेटे की हालत में सुधार
अपने प्रयासों से रमेश ने बेटे के इलाज के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपए (2 लाख डॉॅलर) जुटा लिए हैं, जिनकी मदद से वे ऐसी दवाओं और इलाज पाने में सफल रहे जिससे बेटे राघव की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार नजर आ रहा है। अब रमेश जीन थेरेपी के लिए इस सॉफ्टवेयर की मदद ले रहे हैं।

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