फ्रंटियर्स इन न्यूरोसाइंस में नामक विज्ञान और सेहत संबंधी जनरल में प्रकाशित एक स्टडी में शोर्स ने कहा कि इन भावनाओं और विचारों को आमतौर पर पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) के साथ जोड़ा जाता है जबकि हमारे अध्ययन में ज्यादातर महिलायें जिन्होंने इन ज्वलंत यादों का अनुभव किया वे पीटीएसडी से पीड़ित नहीं थी, जो आमतौर पर अधिक तीव्र मानसिक और शारीरिक प्रतिक्रियाओं से जुड़े होते हैं।
शोर्स ने इस तथ्य को परखने के लिए एक स्टडी की। इस स्टडी में 18-39 आयु वर्ग की औरतों को शामिल किया गया। इस स्टडी में करीब 64 फीदसी महिलाओं ने बताया कि वे यौन हिंसा झेल चुकी हैं जबकि 119 ने बताया कि उनका यौन हिंसा से कभी सामना नहीं हुआ। जिन महिलाओं का यौन हिंसा का इतिहास रहा है, उनके जहन में इन घटनाओं की यादें पूरी तरह से थीं और घटना की यादों को स्पष्ट रूप से उनके दिमाग में देखा गया ।
वो हर उस पल को याद रखे हुए थी जिस दौरन उनके साथ ये हादसा हुआ। उन्हें किसी फिल्म की रील की तरह इसके पल याद थे। वो इन पलों को सुनाते वक्त भी अवसाद में दिखी। उन्होंने बताया कि घटना को भूल पाना उनके लिए कठिन रहा है और वे इसे अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानती हैं. हाल के इस अध्ययन से संकेत मिलते हैं कि अपने कॉलेज के दिनों में प्रत्येक पांच कॉलेज छात्राओं में से एक यौन हिंसा का सामना करती है।
भारत में ऐसे हादसों की संख्या ज्यादा रही है। यहां 9 साल से 39 साल तक की 92 फीसदी महिलाओं को यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ का सामना करना पड़ता है। फिलहाल के सालों में बच्चियों से रेप के मामले बढ़े हैं जिसे चिंता की नजर से देखा जा रहा है।