हाल ही इटली के कैथोलिक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने अपने अध्ययन के हवाले के कहा से कि ट्विटर पर सामान्यत: उपयोग में लिए जाने वाले हैशटैग को फॉलो करने की हमारी लत, पसंद और रिट्वीट करने से हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है। यह शोधकर्ताओं के साथ न्यूरोसाइंटिस्ट के लिए भी सोच का विषय है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ट्विटर न केवल हमारी सोचने-समझने की बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करता है बल्कि काफी हद तक इसे कम भी कर देता है। शोध के प्रमुख लेखक जियान पाओलो बारबेट्टा ने कहा कि यह हमारी व्यवहार संबंधी आदतों को तेजी से बदल रहा है। जियान का यह शोध ट्विटर का छात्रों की उपलब्धि, सीखने की क्षमता और जीवन के अन्य क्षेत्रों से सीखने की प्रक्रिया पर पडऩे वाले प्रभाव को जानने के लिए था। इसके लिए उन्होंने 70 हाईस्कूलों के 1500 छात्रों पर यह शोध किया था।
शोध में शामिल आधे छात्रों ने इटली के नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक लुइगी पिरंडेलो के 1904 में लिखे उपन्यास ‘द लेट मैटिया पास्कल’ का विश्लेषण करने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल किया। यह उपन्यास आत्म-ज्ञान और आत्म-विनाश के मुद्दों पर व्यंग्य करता है। उन्होंने अपने सहपाठियों के इस विषय पर किए ट्वीट और अपने विचार ट्विटर पोस्ट किए। ऑनलाइन हुई इस चर्चा को शिक्षकों ने अपनी कसौटी पर परखा। वहीं शोध में शामिल 4 बाकी के आधे छात्रों ने पारंपरिक शिक्षण विधियों का उपयोग किया। दोनों समूह के छात्रों के प्रदर्शन को उपन्यास के बारे में उनकी समझ और उसके मुख्य बिंदुओं को याद रखने के आधार पर परखा गया। ट्विटर का उपयोग कर उपन्यास के बारे में जानकारी चाहने वालों का परीक्षा परिणाम पारंपरिक शिक्षण विधियों का उपयोग करने वाले समूह के छात्रों की तुलना में 25 से 40 फीसदी तक गिर गया। स्टैनफोर्ड सोशल मीडिया लैब के संस्थापक निदेशक जेफ हैनकॉक का कहना है कि यह बहुत चौंकाने वाला परिणाम है। यह गिरावट महिलाओं समेत उन लोगों में ज्यादा थी जो मूल रूप से इटली के थे, परीक्षाओं में आमतौर पर अच्छे अंक लाते थे और जो उपलब्धियों के मामले में अन्य छात्रों से बेहतर थे। शोधकर्ताओं ने माना कि ट्विटर जैसी माइग्रोब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग साइट व्यक्तिगत प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। जियान का कहना है कि अभी स्पष्ट नतीजे पर पहुंचने के लिए और अध्ययन करने की जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि हमारी सीखने की प्रक्रिया पर ट्विटर किस हद तक प्रभाव डालता है। इस शोध का महत्त्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि हाल ही इटली में सैकड़ों हाई स्कूल छात्रों ने ट्विटर पर साहित्य संबंधी चर्चा के लिए ‘ट्विलैटेरेट्यूरा’ज्वॉइन किया है।
अध्ययन के अनुसार लोग एक प्रक्रिया के तहत समस्याओं का हल ढूंढने की बजाय शॉर्टकट की ओर भागते हैं। ट्विटर पर उपन्यास का अध्ययन करने के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल करने वाले छात्रों के प्रदर्शन में गिरावट के दो प्रमुख कारक हैं। पहला यह कि छात्रों में यह गलत धारणा थी कि उन्होंने ट्विटर पर अपनी सामग्री के बारे में ट्वीट प्रसारित करके पुस्तक को अवशोषित किया था। दूसरा यह था कि सोशल मीडिया पर बिताए गए समय को केवल पुस्तक पर विचार करने में बिताया गया समय बदल दिया गया। शोध में सामने आया कि ऑनलाइन या सोशल मीडिया पर (स्क्रीन बेस्ड) अध्ययन में बच्चे ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते और बार-बार उनका ध्यान भटकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कभी लोगों को जोडऩे और ज्ञान के प्रचार-प्रसार के टूल के रूप में देखे जाने वाले सोशल मीडिया के इस मकडज़ाल से युवाओं को कैसे बचाया जाए, यह एक बड़ा सवाल है। इटली के नोबेल पुरस्कार प्राप्त महान साहित्यकार लुईगी पिरान्डेलो ने १1934 में अपनी एक किताब में लिखा था, ‘कोई है जो मेरी जिंदगी जी रहा है, लेकिन में उसके बारे में कुछ नहीं जानता।’ यह आज के संदर्भ में सोशल मीडिया के बारे में सटीक निष्कर्ष है।