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डायनोसोर के जमाने की इस ‘अमर’ चीज की हुई खोज, भारतीय वैज्ञानिकों के लिए है बड़ा अचीवेमेंट

इस पौधे की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये औषधीय गुणों से सम्पन्न है।

नई दिल्लीApr 07, 2018 / 11:16 am

Priya Singh

Dinosaur
नई दिल्ली। डायनोसोर, ये शब्द सुनते ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। संसार से अलविदा कह चुके इस जीव को हम सिनेमा के पर्दे या फिर अपनी कल्पनाओं में देखें हैं। हाल ही में वैज्ञानिक डायनोसोर काल से संबंधित चीजों को लेकर कुछ ऐसे खुलासे है जिसके बारे में सूनकर आप दंग रह जाएंगे। बता दें, उत्तराखंड वानिकी शोध शाखा रानीखेत के वैज्ञानिकों द्वारा ये शोध किया गया है। ये रिसर्च एक पेड़ के इर्द—गिर्द घूमती है।
Ginkgo biloba
हम यहां बात कर रहे हैं जिंको बाइलोवा पौधे के बारे में,करीब 270 मिलियन साल पुराने इस पौधे का संबंध डायनोसोर काल से जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड वानिकी शोध शाखा रानीखेत के वैज्ञानिकों ने इस पौधे की प्रजाति के क्लोन उगाने में सफल रहें। इस पौधे की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये औषधीय गुणों से सम्पन्न है।
इसका उपयोग कर्इ तरह की दवाइयों को बनाने में किया जा सकता है। ऐसे में इसकी क्लोनिंग कर इसका भरपूर फायदा उठाया जा सकता है। आपको बता दें कि इसी क्लोनिंग के जरिए उत्तराखंड वानिकी शोध शाखा की नर्सरी में जिंको बायलोवा के 151 पौधे तैयार किए गए है। जिंदा जीवाश्म कहे जाने वाले इन पौधों की ऊंचाई नर्सरी में अभी दो मीटर है।
Ginkgo biloba
एक रिसर्च में हुए खुलासे से इस बात का पता चला है कि ये पौधा दमा,एलर्जी,अल्जाइमर्स,नपुंसकता इत्यादि रोगों का उपचार करने में सक्षम है। पांरपरिक चीनी दवाईयों में इस पौधे का उपयोग सदियों से होता रहा है। पहले चीन से इसकी पत्तियों को दुनियाभर में निर्यात किया जाता था लेकिन अब इसकी उत्पत्ति भारत में भी होने लगी है। जिंकोगेशिया फैमिली की ये एकमात्र प्रजाति है जो आज भी अस्तित्व में है।
Ginkgo biloba
जिंको बायलोवा नर और मादा दोनों होते हैं। इनमें पहचान आप कुछ इस तरह से कर सकते हैं। नर पौधे की पत्तियों में कटाव कम गहरा होता है। इसके साथ ही इन्हें पहचानने का एक और तरीका है और वो ये कि नर पौधे में फूल देर से यानि कि करीब चार महीने बाद आता है जबकि मादा में फूल जल्दी आ जाते है। करोड़ों साल पुराने इस पौधे का पुन विकास करना वाकई में भारत के वैज्ञानिकों के लिए बड़ी सफलता है।

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