scriptखवासा के मटके दूसरे शहर की बुझाते है प्यास | Khawasa's pots quench the thirst of another city | Patrika News
सिवनी

खवासा के मटके दूसरे शहर की बुझाते है प्यास

आधुनिक फ्रिज एवं वाटर कूलर को मात देते हुए राहत प्रदान करता है

सिवनीMar 08, 2020 / 08:03 pm

mantosh singh

खवासा के मटके दूसरे शहर की बुझाते है प्यास

खवासा के मटके दूसरे शहर की बुझाते है प्यास

सिवनी. आज के इस आधुनिक युग में जहां परम्परागत दैनिक उपयोग की वस्तुओं को विज्ञान के नए-नए अविष्कार बीते जमाने की वस्तु में तबदील कर रहे हैं। लेकिन आज भी कुछ ऐसी चीजें हैं जो अपनी उपयोगिता के बल पर सभी आधुनिक संसाधनों व वस्तुओं को मुंह तोड़ जवाब देते हुए अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हुए न सिर्फ लोगों को राहत पहुंचाती है बल्कि इनके निर्माण में शामिल लोगों के परिजनों का पालन पोषण भी करती हैं। ऐसी ही एक परम्परागत वस्तु है देशी फ्रिज अर्थात मटका, जो देश के महानगरों में शुमार नागपुर महानगर में ग्रीष्म ऋतु में पडऩे वाली भीषण गर्मी में यहां के वाशिंदों को वही मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुश्बुयुक्त ठण्डे पानी से गले को तर कर आधुनिक फ्रिज एवं वाटर कूलर को मात देते हुए राहत प्रदान करता है और इन मटकों का निर्माण होता है। सिवनी जिले के खवासा के समीपी ग्राम पचधार में हर साल होने वाले मोगली उत्सव में बाहर से आने वाले बच्चें को यहां का मटका उद्योग दिखाने भ्रमण भी कराया जाता है।
मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित ग्राम खवासा के समीपी ग्राम पचधार-नएगांव के लगभग 75 प्रतिशत निवासी पीढियों से लाल व काले मटकों सहित मिट्टी से निर्मित अन्य सामग्रियों का निर्माण करते आ रहे हैं। यही सामग्री इन दोनों गांवों के अधिसंख्य परिवारों को रोजी-रोटी प्रदान करते आ रही है। इन ग्रामों में साल भर मटके आदि के निर्माण का कार्य जारी रहता है और निर्मित मटकों का 90 प्रतिशत भाग पड़ोसी प्रांत महाराष्ट्र के नागपुर जिले में भेजा जाता है। यहां के निवासी इमरान खान ने बताया कि वे लोग थोक में से व्यापारियों को बेचते हैं जिन्हें व्यापारी ट्रकों के माध्यम से नागपुर ले जाते हैं जहां वे अधिक मूल्य पर बेचते हैं। इस कार्य से जुड़े लोगों का कहना है कि हमें जो मूल्य प्राप्त होता है वह उचित तो नही है। इसमें और बढ़ोतरी होना चाहिए क्योंकि मेहनत और लागत के बाद केवल इतना बच पाता है कि दो जून की रोटी ही इस कार्य से मुहैया हो पाती है। चूंकि इस कार्य में पूरा परिवार हाथ बटाता है। इसलिए बचत थोड़ी बहुत हो पाती है। अगर इसी काम को मजदूरों के द्वारा कराया जाता है तो इसका लागत मूल्य भी नहीं निकल पाएगा। जिसके चलते मटका निर्माताओं को अपने परिवार के साथ इस कार्य में जुटना पड़ता है। ग्रामवासियों ने बताया कि हमें खुशी इस बात की है कि हमारे द्वारा निर्मित मटके नागपुरवासियों की प्यास बुझाते हैं जिसका हमें संतोष है कि भीषण गर्मी में किसी प्यासे को ठण्डा पानी मिलता है जो हमारे लिए पुण्य के समान हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो