फार्मासिस्ट ने दिखाई सूझ-बूझ, बचाई कई मरीजों की जान
दिन-रात कार्य कर ऑक्सीजन सिलेंडर किया तैयार
फार्मासिस्ट ने दिखाई सूझ-बूझ, बचाई कई मरीजों की जान
सिवनी. अपै्रल महीने में जब कोरोना महामारी पूरी रफ्तार से लोगों को संक्रमण में जकड़ रही थी और असमय ही लोग अपनी जिंदगी खो रहे थे। ऐसे समय में जीवन रक्षा के लिए सबसे जरूरी थे ऑक्सीजन सिलेंडर। लेकिन इनकी कमी थी, तब जिला चिकित्सालय ने सूझबूझ दिखाई और अपने तकनीकी अनुभव के साथ दिन-रात काम करते हुए कई मरीजों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर तैयार किए।
फार्मासिस्ट विजय गावन्डे जिला चिकित्सालय के अैाषधि भंडार में फार्मासिस्ट ग्रेड-2 के पद पर कार्यरत हैं। कोविड महामारी के दौरान गावन्डे ने मानवीय सूझ-बूझ के साथ अपनी भूमिका बखूबी निभाई। वे विषम परिस्थितियों में भी अपनी जिम्मेदारी निभाने से नहीं चूके।
गावन्डे को कोरोना महामारी के दौरान जिला चिकित्सालय में कोविड मरीजों के बढ़ते दबाव को देखते हुए पर्याप्त मात्रा में 24 घंटे सातों दिन औषधियों एवं सामग्री के अलावा ऑक्सीजन सिलेंडर के निरंतर प्रदाय करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी। जिसके तहत ऑक्सीजन सिलेंडर दूसरे जिलों से भरवाकर बुलवाना तथा उन्हें आवश्यकता अनुसार वार्डों में भर्ती मरीजों को समय पर उपलब्ध कराना थी। इस दौरान ऐसा भी मौका आया कि बाहर से छोटे ऑक्सीजन सिलेंडर भरकर नहीं आ रहे थे और भर्ती मरीजों की संख्या ज्यादा थीं। सभी को ऑक्सीजन की आवश्यकता होने पर इन्होंने मौके पर उपलब्ध बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर से छोटे-छोटे सिलेंडरों में ऑक्सीजन भरकर सभी मरीजों को जीवनदायक ऑक्सीजन उपलब्ध कराई। यह तकनीक भर्ती मरीजों के लिए जीवनदायिनी साबित हुई तथा मरीजों को आसानी से ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध होने लगे। जिससे मरीजों के परिजनों को बड़ी राहत मिली।
एक समय ऐसा भी आया जब जबलपुर से ऑक्सीजन सिलेंडर मिलना बंद हो गए थे तथा ऑक्सीजन की बहुत ज्यादा आवश्यकता थीं, ऐसी विकट परिस्थिति में कलेक्टर डॉ. राहुल हरिदास फटिंग एवं जिला पंचायत सीइओ पार्थ जायसवाल के लगातार प्रयासों से जिला चिकित्सालय में ऑक्सीजन प्लांट युद्धस्तर पर शुरु कराया गया। जिससे आइसीयू एवं अन्य वार्डों में भर्ती मरीजों को ऑक्सीजन की सप्लाई निरंतर जारी रही। यह व्यवस्था भी मरीजों के लिए जीवनदायिनी साबित हुई।
गावन्डे ने बताया कि इतना बड़ा कार्य अधिकारियों एवं स्टाफ के सहयोग के बिना संभव नही था। कोरोना मरीजों की संख्या मे कमी आने के बाद मुझे जो खुशी मिली उसको मैं शब्दों में बयान नही कर सकता। मानवता के लिए मानव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। इस कार्य में सिविल सर्जन डॉ. विनोद नावकर, के साथ जिला पंचायत के लेखा अधिकारी निलेश जैन भी तत्परता से प्रयासरत रहे।
अकेले दिन-रात करना पड़ा काम
गावन्डे ने बताया कि स्टोर में उनके साथ कार्य करने वाले 3 और कर्मचारी साथी भी थे। किंतु तीनों ही एक समय में कोरोना पॉजिटिव हो गए। ऐसी स्थिति में अकेला ही रह गया था, जिसके कारण मेरे ऊपर सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे भर्ती मरीजों के लिए औषधियां, उपकरण सामग्री तथा ऑक्सीजन प्रदाय की जिम्मेदारी रहती थी। यह कार्य मेरे अकेले व्यक्ति के लिए चुनौती पूर्ण था। किंतु इस समय मेरी अंतरात्मा की आवाज ने कहा कि यही समय है जब धैर्य और लगन से कार्य कर मंै कई मरीजों की जान बचा सकता हूं। इस पर मेरे परिवार के सदस्यों ने मेरा सहयोग करते हुए मनोबल बढ़ाया। जिससे मुझे कार्य करने का उत्साह और हिम्मत मिली। तब यह कार्य निर्बाध रूप से बिना किसी परेशानी के करता चला गया। यह मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण व यादगार समय था।
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