सिवनी. जिसके दिल में भगवान के प्रति अथाह प्रेम होता है, उसे मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। परम्ब्रम्ह परमात्मा सर्वज्ञाता है और वह अपने भक्तों के संकट दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। बस आवश्यकता है तो सिर्फ सच्चे मन से भगवान के चरणों में खुद को समर्पित कर लें। उक्ताशय की बात विकासखण्ड केवलारी के ग्राम पंचायत पांजरा स्थित राम
मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत पुराण ज्ञानयज्ञ में कथा वाचक वृंदावन स आए आचार्य पं. अनिरुद्धाचार्य महाराज ने श्रद्धालुजनों से कही।
महाराज ने आगे कहा कि सुदामाजी भगवान
कृष्ण के बचपन के मित्र थे। सुदामा की शादी होने के बाद बहुत ही गरीबी आ गई। वह अपने सखा भगवान द्वारिकाधीश से कुछ मांगने नहीं जाते थे। जगतपति श्रीकृष्ण की मित्रता का जिक्र उन्होंने एक बार अपनी धर्मपत्नी को बताया। सुदामाजी निष्काम भक्ति के प्रतीक है। उन्होंने बताया कि प्रकृति से विलग होने पर निष्काम भक्ति बनती है और भगवान को निष्काम भक्ति प्रिय है। इसलिए न तो सुदामाजी ने भगवान श्रीकृष्ण से कुछ मांगा और न ही भगवान ने सुदामाजी को ही कुछ दिया। उन्होंने जो भी दिया वह सुदामाजी की पत्नी सुशीला के मन संकल्प के कारण दिया।
अनिरुद्धाचार्य महाराज ने श्रीकृष्ण सुदामा मिलन की कथा का बहुत ही रोचक एवं भावपूर्ण वर्णन करते हुए बताया कि सुदामा से मिलने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के आंशू नहीं थम रहे थे। वह अपने बाल सखा की दीनहीन दशा देख कर व्याकुल हो गए। यही तड़प भगवान की हर उस भक्त के लिए होती है, जो खुद को ईश्वर में अर्पण कर देता है।
कथा आयोजक पं. कृष्ण कुमार, दमयंती मिश्रा, पं. हरिकुमार मिश्रा, पं. रघुवीर मिश्रा, सतेन्द्र मिश्रा, धनेन्द्र, रामशरण मिश्रा व डॉ. मदन गोपाल दुबे ने बताया कि स्व. पं. रामनाथ मिश्रा की स्मृति में जारी कथा का समापन रविवार को हवन, पूजन, भण्डारा व प्रसाद वितरण के साथ किया गया।
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