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सिवनी

भगवान शिव की पूजा कर सुनी शिव कथा

गांव-गांव गूंजे हर-हर महादेव

सिवनीMar 04, 2019 / 08:52 pm

santosh dubey

Shiva, Katha, Mahashivaratri, Dharma, Samskar

भगवान शिव की पूजा कर सुनी शिव कथा

सिवनी. महाशिवरात्रि के चलते सोमवार को नगर के शिवालय में भक्तों की भीड़ लगी रही। विकासखण्ड केवलारी के ग्राम पंचायत खैरापलारी में श्रद्धालुजनों ने महादेव का अभिषेक कर पूजन किया। कहीं जल अभिषेक कहीं हवन, कहीं भंडारा, भजन कीर्तन का दौर देर रात तक चलता रहा।
पं. अनिल तिवारी ने बताया कि यह साल की आने वाली 12 शिवरात्रियों में से सबसे खास है। मान्यता है फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि सबसे बड़ी शिवरात्रि होती है। इसी वजह से इसे महाशिवरात्रि कहा गया है। दरअसल हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी वाले दिन शिवरात्रि होती है। लेकिन महाशिवरात्रि के दिन ही मंदिरों में शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। व्रत रखते हैं, बेलपत्र चढ़ाते हैं और भगवान शिव की विधिवत पूजा करते हैं।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी दिन पहली बार शिवलिंग की भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने पूजा था। मान्यता है कि इस घटना के चलते महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है। वहीं, माना यह भी जाता है कि ब्रह्माजी ने ही महाशिवरात्रि के दिन ही शिवजी के रुद्र रूप का प्रकट किया था।
दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसी वजह से नेपाल में महाशिवरात्रि के तीन दिन, पहले से ही मंदिरों को मंडप की तरह सजाया जाता है। मां पार्वती और शिवजी को दूल्हा-दुल्हन बनाकर घर-घर घुमाया जाता है और महाशिवरात्रि के दिन उनका विवाह कराया जाता है। इसी कथा के चलते माना जाता है कि कुवांरी कन्याओं द्वारा महाशिवरात्रि का व्रत रखने से शादी का संयोग जल्दी बनता है।
तीसरी प्रचलित कथा के मुताबिक भगवान शिव द्वारा विष पीकर पूरे संसार को इससे बचाने की घटना के उपलक्ष में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। सागर मंथन के दौरान जब अमृत के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था, तब अमृत से पहले सागर से कालकूट नाम का विष निकला। ये विष इतना खतरनाक था कि इससे पूरा ब्रह्मांड नष्ट किया जा सकता था। लेकिन इसे सिर्फ भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे। तब भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ नीला हो गया। इस घटना के बाद से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा।

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