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पिछड़े इलाके का ये सरकारी स्कूल सबके लिए बना रोल मॉडल

locationसिवनीPublished: Feb 16, 2020 12:09:36 pm

Submitted by:

sunil vanderwar

धनौरा विकासखण्ड का प्राथमिक शाला कुरनभटा

seoni

कमिश्नर ने कहा इस प्रोजेक्ट को अमल में भी लाओ,तब है कोई बात

सिवनी. सरकारी स्कूल का नाम लेते ही लोगों के जहन में अव्यवस्था से भरे कमरे, टाट-पट्टी पर गंदे-फटे कपड़ों में बैठे शोर मचाते बच्चे, अलसाए मास्टरजी की धुंधली सी तस्वीर उभर आती है, लेकिन इस सोच को बदलने की कोशिश जिले के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल कर रहे हैं। विकासखंड धनौरा जनशिक्षा केन्द्र में प्राथमिक शाला कुरनभटा एक ऐसा विद्यालय है, जिसके भवन का सौंदर्य हो या शैक्षिक गुणवत्ता यहां आने वालों के लिए दूसरे सरकारी स्कूलों से अलग अनुभव कराता है। यह विद्यालय विकासखंड धनौरा में चलाई जा रही मुहिम चलो अच्छा पढाएं, स्कूल बचाएं मुहिम के सफल परिणाम बनकर अन्य सभी सरकारी स्कूलों के लिए असरकारी उदाहरण बना गया है।
यहां पहुंचकर, बच्चों से मिलकर, विद्यालय की समस्त गतिविधियों को देखने, समझने पर लोग हैरान होते है,ं जो शासकीय विद्यालयों के प्रति समाज में व्याप्त नकारात्मक छवि को दूर करने की दवा के रूप में स्वीकार करने योग्य है। यहां पदस्थ कैलाश बकोडे प्राथमिक शिक्षक और मीना पारधी पदस्थ हैं। विद्यालय व विद्यार्थियों के प्रति इन शिक्षकों का समर्पण ही है, यह विद्यालय रोल मॉडल बनकर दूसरे शिक्षकों के लिए प्रेरणा स्थल बन रहा है। कमिश्नर, कलेक्टर, डीईओ, डीपीसी जैसे अधिकारी भी इस दिशा में सभी शिक्षकों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
धनौरा बीआरसीसी प्रकाश ठाकुर बताते हैं कि स्वयं प्राथमिक शाला कुरनभटा के शिक्षकों के समर्पण व बच्चों की शिक्षा व स्कूल की व्यवस्था में आए बदलाव के गवाह हैं। बताया कि इस शाला के 90 प्रतिशत बच्चे मूलभूत दक्षताओं में दक्ष हैं। शिक्षकों ने स्वयं एवं जनसहयोग द्वारा बच्चों के लिए 25 हजार रुपए का फर्नीचर उपलब्ध कराया है। दीवारों पर सुंदर शिक्षाप्रद चित्रकारी, परिसर में फुलवारी है। कक्षों में पंखों से लेकर दीवारों पर अंकित टीएलएम सब इसे विशिष्ट बना रहे हैं। बच्चे रोजाना गणवेश में आते हैं, जनसहयोग से बच्चों को स्वेटर्स वितरित की गई हैं।
स्कूली बच्चों द्वारा स्कूल परिसर में तैयार किए गए बगीचे में पौधे इसके शैक्षिक पर्यावरण को नया आयाम दे रहे हैं। गुणवत्ता युक्त मध्यान्ह भोजन बहुत ही सलीके से डायनिंग हॉल में खिलाया जाता है। भोजन से पूर्व मंत्र उच्चारण। बच्चों की औसत उपस्थिति 95 प्रतिशत है। प्रति माह अधिकतम उपस्थिति वाले विद्यार्थी को पुरस्कार दिया जाता है। शत-प्रतिशत उपस्थिति और ठहराव के लिए स्कूल समय से एक घण्टे पूर्व पालकों से सम्पर्क किया जाता है। शाला प्रबंधन समिति को सक्रिय कर बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चित की जाती है। कॉपी, पेंसिल, रबर बच्चों के लिए हरदम स्कूल में ही उपलब्ध रहती है। यहां का शौचालय शिक्षक द्वारा स्वयं के व्यय से बनवाया गया है और उसकी नियमित सफाई भी होती है।
बीआरसीसी ने बताया कि इस वर्ष गुणवत्तायुक्त शिक्षण क्षेत्र में अनुकरणीय और उल्लेखनीय कार्य के लिए कैलाश बकोडे को कलेक्टर प्रवीण सिंह द्वारा सम्मानित भी किया गया है। ऐसे प्रतिबद्ध और कर्मठ शासकीय शिक्षकों से जिले का शैक्षिक पर्यावरण को नई ऊंचाई मिल रही है। जिससे समाज में शासकीय विद्यालयों के प्रति सकारात्मक भाव पैदा हो रहा है। ऐसे शिक्षक समाधान के हिस्से हैं, कोई भी समस्या इनकी प्रतिबद्धता को डिगा नही सकती। इन्होंने सिद्ध कर दिया है कि सरकारी है तो असरकारी हैं।
बदल रही सबकी सोच –
धनौरा ब्लॉक के दूरस्थ ग्रामीण स्कूलों में भी खासा बदलाव नजर आ रहा है। शिक्षा के अलावा व्यवस्था भी दूसरे स्कूलों के लिए रोल मॉडल है। सरकारी स्कूलों के प्रति आम लोगों की धारणा भी बदल रही है।
जेके इड़पाचे, डीपीसी सिवनी
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