रेयान स्कूल की घटना से प्राइवेट स्कूल संचालकों में समाया डर, पढि़ए क्या है मामला
संचालकों का कहना है कि निजी स्कूलों से सम्बंधित किसी भी प्रकरण में शासन-प्रशासन स्कूल प्रबंधन का पक्ष भी जाने तभी कार्रवाई हो।
सिवनी. दिल्ली के रेयान स्कूल में हुई घटना और उसके बाद प्रशासन व पुलिस की कड़ी कार्रवाई से प्राइवेट स्कूल संचालकों में डर समया हुआ है। अशासकीय शैक्षणिक संगठन ने विभिन्न मांगों को लेकर प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है। निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि निजी स्कूलों से सम्बंधित किसी भी प्रकरण में शासन-प्रशासन स्कूल प्रबंधन का पक्ष भी जाने तभी कार्रवाई हो। इसके अलावा कई और मांगों को ज्ञापन में शामिल किया गया है।
ज्ञापन सौंपते अशासकीय शैक्षणिक संगठन के सदस्यों ने शासन-प्रशासन पर एकतरफा र्कावाई का आरोप लगाते कहा कि दिल्ली के रेयान पब्लिक स्कूल में घटित घटना के बाद अशासकीय स्कूलों के विरूद्ध शासन-प्रशासन सख्ती बरत रहा है। सेन्ट्रल समिति की अनुशंसा पर सरकार किसी भी घटना के लिए स्कूल प्रबंधन, प्राचार्य, स्टॉफ एवं सम्बंधित कर्मचारियों पर शक के आधार पर प्रकरण पंजीबद्ध करती है। राज्य सरकार भी केन्द्र के इस आदेश का यथा स्थिति समर्थन करती है तो यह न्याय संगत नहीं होगा। इन परिस्थितियों में स्कूल चला पाना संभव नही है। किसी एक की गलती पर पूरी संस्था पर कार्रवाई न्याय संगत नहीं होगी। जिस पर विद्यालय का पक्ष सुनने की अपेक्षा है।
मांग को लेकर संगठन के पदाधिकारियों ने बताया कि सरकार शिक्षकों का पुलिस वेरिफेकिशन कराने की बात कर रही है। हम भी चाहते हैं कि ऐसा हो परंतु वेरिफेकिशन के लिए स्टॉफ थाना नहीं जाए। पुलिस वेरिफेकिशन स्कूल में ही आकर किया जाए। महिला स्टॉफ का दस्तावेज वेरिफेकिशन महिला पुलिस करे।
निजी स्कूल संचालकों ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में आए दिन वाहनों की बढती संख्या एवं गति तथा भारी वाहनों के प्रवेश को स्कूल की समयावधि में बाधित किया जाए। आरटीई के बच्चे प्रवेश से वंचित रह गए हैं। आरटीई का द्वितीय चरण प्रदान किया जाए। राज्य सरकार 2018 से 9वीें, 10वीें में संस्कृत की अनिवार्यता समाप्त करने विचार कर रही है। संगठन का मानना है कि संस्कृत हमारी संस्कृति है। संस्कृत हमारी प्रथम भाषा है। जो पहले स्नातक स्तर तक पढाई जाती थी। धीरे-धीरे 10वीें तक आ गई। संस्कृत को यदि समाप्त किया जाता है तो हम सभी इसका विरोध कर धरने पर बैठ जाएंंगे। यदि संस्कृत नहीं तो हमारे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है।
इन सभी मांग को लेकर केके चतुर्वेदी, आरके रघुवंशी, दिनेश अग्रवाल, अखिलेश तिवारी, वायएस राणा, गजेश ठाकरे, देवेन्द्र सोनी, तेरसिंह राहंगडाले, नरेन्द्र अग्रवाल, संतोष चौबे, मनीष पाण्डे, ज्ञानीराम भैरम, अजीत शाह, फिरदौस खान, राजेश बिसेन, शोभारानी राजपूत, एसडी कुमार सहित अन्य शामिल थे।