ओल्ड फारमर्स-डे-कोदो-कुटकी से शुरू की थी खेती, अब मक्का और तुअर की खेती से संवार रही है जीवन
शाहडोल•Oct 11, 2019 / 08:13 pm•
brijesh sirmour
Amha Tola’s tribal women farmers are not less than men
शहडोल. अब से करीब चार-पांच दशक पूर्व प्राकृतिक संसाधनों मेें खेती किसानी के कार्य को पारंपरिक ढग़ से अंजाम दिया जाता था। जिसका असर यह होता था कि किसान और उसका परिवार का सदस्य बहुत कम बीमार होता था। पहले की खेती किसानी में मेहनत और लगन की ज्यादा जरूरत होती थी, मगर उपज कम ही मिलती थी। इसी प्राकृतिक और पारंपरिक ढ़ंग की खेती के अनुभवों के आधार पर संभागीय मुख्यालय से लगे ग्राम अमहा टोला में 70 वर्षीय महिला कृषक बिरजिया बैगा आज अपनी जमीन पर मक्का और तुअर की उन्नत खेती कर अपना और अपने परिवार के जीवन को संवार रही है। इन्होने शादी के पहले से ही अपने जीवन में खेती-किसानी कार्य को अपना लिया था और खेतों में कोदो-कुटकी की फसल बोने से इस कार्य की शुरूआत की थी और अब इन्होने अपने जीवन में खेती-किसानी के कार्य में ढ़ाल लिया है और आज भी काफी बुजुर्ग होने के बाद भी खेती-किसानी कार्य में जुटी रहती है।
पाल रही हैं अपना व अपने दो बच्चों का परिवार
महिला कृषक पिछले दो-तीन दशकों से अपना व अपने दो बच्चों के परिवार को खेती किसानी के कार्य से पाल रही है। वह हर सीजन में दस से बारह क्विंटल तक मक्का की उपज और आठ से दस क्विंटल तक तुअर की उपज ले लेती है। कृषि कार्य में उनके पति चितरू बैगा और दो बच्चे भी हाथ बंटाते हैं।
पारंपरिक ढ़ंग से करती है आधुनिक खेती
ग्राम अमहा टोला निवासी आदिवासी महिला कृषक बिरजिया बाई ने बताया है चालीस साल पहले वह जिस तरह से अपने खेत में कोदो-कुटकी की फसल बोती थी, उसी तरह आज भी वह मक्का व तुअर की खेती कर रही है। वह रासायनिक खादों व अन्य पैदावार बढ़ाने वाली आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करती है, मगर वह उन्नत किस्म के बीजों से ही पुरानी जैविक खादों का इस्तेमाल कर फसलों की बेहतर उपज ले रही है।