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MP Election 2023: मतदाता बोले- जो भी सरकार बने पलायन रोके और रोजगार दें, उम्मीदें पूरी करें

शहडोल संभाग: प्राकृतिक संसाधनों का स्थानीय स्तर पर मिले लाभ, संवर्धन के लिए हो ठोस पहल...> वन संपदाओं के लिए बाजार नहीं, औद्योगिक गतिविधियां भी शून्य...>

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शहडोल

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Manish Geete

Nov 24, 2023

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सूबे में सरकार किसी भी दल की बने, जनता बस यही चाहती है कि वह उनकी उम्मीदों पर खरी उतरे। दोनों प्रमुख दलों ने चुनावी वादे तो खूब किए हैं, लेकिन क्षेत्र की आवश्यकताओं पर किसी का फोकस नहीं रहा।

शहडोल संभाग की बात करें तो तीनों जिले चारों तरफ से वनों से घिरे हुए हैं। यहां अकूत वन संपदा है, लेकिन इनके संवर्धन की दिशा में कोई ऐसी ठोस पहल नहीं हुई, जिससे कि स्थानीय लोगों को लाभ मिल सके। प्राकृतिक संपदाओं की भी कोई कमी नहीं है। शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में कोयला खदानों का भंडार है। यह पूरा कोयला दूसरे प्रदेशों में भेजा जा रहा है। स्थानीय लोगों को न तो इसका लाभ मिल रहा है और न ही कोयला खदानों में रोजगार के ही कोई आसार हैं। यूं कहें कि संभाग में औद्योगिक गतिविधियां भी न के बराबर हैं। ऐसे में यहां नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती युवाओं को रोजगार मुहैया कराकर पलायन जैसी गंभीर समस्या से निजात दिलाना होगी।

कभी 19 उद्योग थे, अब दो ही बचे

वन संपदाओं से घिरे शहडोल जिले में बाहरी व्यापारी औने-पौने दाम पर यहां पाई जाने वाली 14 प्रकार की वन संपदाओं को खरीद रहे हैं। वन संपदाओं के संवर्धन और इन्हें बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं होने से लोगों को लाभ नहीं मिल रहा। जिले में औद्योगिक गतिविधियां न के बराबर हैं। अमलाई ओपीएम व रिलायंस में लोगों को समुचित रोजगार नहीं मिल रहा। मुख्यालय से लगे नरसरहा में लगभग 20 एकड़ में 19 से ज्यादा उद्योग स्थापित थे। अब एक दो ही बचे हैं। इसके अलावा दियापीपर में औद्योगिक केंद्र स्थापित करने की प्रक्रिया कई वर्ष से लंबित है।

पार्क को लेकर पहचान, विस्थापन का दंश

उमरिया जिले की पहचान बांधवगढ़ नेशनल पार्क से हैं। इसके बाद भी लोगों को रोजगार के अवसर नहीं मिल रहे। दर्जनभर गांव विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। बाणसागर बांध बनने के चलते पुराना रीवा मार्ग बंद होने के बाद चंसुरा, झाल, चितरांव, बटुरावाह, दमोय, इंदवार, पडख़ुरी, भरेवा आदि गांव आज भी विकास की मुख्य धारा से जुडऩे जद्दोजहद कर रहे हैं।

अमरकंटक की वादियों में औषधियों का भंडार, पहचान नहीं

मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक की वादियों में औषधियों का अकूत भंडार है। शोध और पहचान के अभाव में चाहकर भी लोग समुचित लाभ नहीं ले पा रहे। उद्गम स्थल में ही मां नर्मदा का अस्तित्व खतरे हैं। चारों तरफ कांक्रीट का पहाड़ खड़ा है। नालों के पानी को इससे मिलने से अब तक नहीं रोका जा सका है। कार्ययोजना का समुचित क्रियान्वयन नहीं होने से स्थिति खराब हो रही है। दूसरी सबसे बड़ी समया पलायन है। आदिवासी परिवारों के पास रोजगार और आजीविका के अन्य साधन नहीं हैं। ऐसे में राजेन्द्र ग्राम से जुड़े आसपास के तराई अंचल, सरई, पीपर टोला, बेनीबारी गांव के लोग काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का स्थानीय को मिले लाभ

औद्यागिकीकरण की महती आवश्यकता है। किसानों के लिए कृषि के साथ ही आय का अन्य जरिया हो। पशुपालन को बढ़ावा देने के प्रयास हों व प्राकृतिक संसाधनों का स्थानीय लोगों को लाभ मिले।

-महेंद्र शुक्ला, सेवानिवृत्त अधिकारी

सुविधाएं नहीं होने से बंद हो रहे उद्योग

औद्योगिक माहौल नहीं है। ट्रांसपोर्टिंग और मजदूरों की कमी के साथ ही शहर की सीमा से लगे होने की वजह से कई औद्योगिक गतिविधियां बंद हो गई हैं। युवाओं को रोजगार मिले इसके लिए उद्योग स्थापित होने चाहिए।

-संजय मित्तल, व्यवसायी

उद्योगों की स्थापना से संभव होगा विकास

क्षेत्र के विकास के लिए यहां उद्योगों की स्थापना हो। कोयला भरपूर है इसका स्थानीय स्तर पर लाभ मिले कुछ ऐसे प्रयास होने चाहिए। वन संपदाओं के संवर्धन की दिशा में प्रयास हों तो लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।

-सुशील सिंघल, सीए