बाबू सरस्वती प्रसाद पटेल ने मजदूरों के साथ भी अंग्रेजों के खिलाफ खोला था मोर्चा
शाहडोल•Aug 15, 2020 / 07:43 pm•
Ramashankar mishra
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शहडोल. स्वाधीनता की लड़ाई में शहडोल के सेनानियों का भी अहम योगदान रहा है। अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में वर्ष 1932 में शहडोल के बुढ़ार में आंदोलन में दम भरा था। वर्ष 1932 के दौर में शहडोल जिले के दो प्रमुख नेता थे पं. शंभूनाथ शुक्ल व दानबहादुर सिंह खैरहा। दोनो सक्रिय एवं लोकप्रिय नेता था। इसी दौरान बाबू सरस्वती प्रसाद पटेल इन दोनो के संपर्क में आए। वह पं. शंभूनाथ शुक्ल के साथ पैदल देहातों का दौरा करते थे और उनके नेतृत्व में कार्य कर रहे थे।
बेटे को उदास देख मां ने दिया था हौसला
पं. शंभूनाथ शुक्ल के साथ पैदल देहातों का दौरा कर आंदोलन की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने वाले बाबू सरस्वती प्रसाद पटेल एक दिन दौरे से लौटने के बाद काफी उदास थे। उन्हे उदास देखकर उनकी मां ने उनका हौसला बढ़ाया था। कहा था तुम क्यों सोच करते हो, जेल जाना है तो जाओ, तुम्हारे बाल-बच्चो व गृहस्थी को मैं अच्छी तरह से संभाल लूंगी। इसके बाद वह आंदोलन की लड़ाई में पूरी तरह से कूद पड़े। विंध्यप्रदेश के कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहते हुए बाबू सरस्वती प्रसाद पटेल ने शहडोल में मजदूरों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था।
घंटों थाना में बैठाकर रखते थे अंग्रेेज अफसर
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करने वाले बाबू सरस्वती प्रसाद पटेल ने इस दौरान कई यातनाएं भी सही है। 1932 में पुलिस ने उन्हे बहुत तंग किया था। उन्हे सुबह 8 बजे घर से बुला लिया जाता था और थाना में लगभग 8-9 बजे रात्रि तक बैठाकर रखा जाता था। इस बीच मुन्शी व थानेदार उन्हे अपमानित भी करते थे।
1942 के स्वतंत्रता संग्राम का किया संचालन
मई 1942 में पं. शंभूनाथ शुक्ल की गिरफ्तारी के बाद शहडोल कांग्रेस के संगठन व संचालन का भार बाबू सरस्वती प्रसाद पटेल के ऊपर आ गया। उन्होने 1942 के स्वतंत्रता संग्राम का संचालन अपने साथी धर्मचन्द जैन तथा शिवप्रसाद गुप्त के साथ किया। उन्होने कालरी मजदूरों को भी संगठित किया और उन्हे उनकी शक्ति का आभास कराया।
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