घर में तड़प रहा था बेटा, अंग्रेज बोले तहसीलदार बना दूंगा, लेकिन नहीं झुके पंडित जी
विन्ध्य प्रदेश के पहले सीएम की संघर्षभरी कहानी
शुभम बघेल
शहडोल- भारत की स्वतंत्रता में विंध्य प्रदेश के सीएम शंभूनाथ शुक्ल का अहम योगदान था। अंग्रेजी हूकुमत की तमाम प्रताडऩा के बाद भी देश को ब्रिटिश सरकार के चंगुल से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करते रहे। अंग्रेजों ने कई शर्ते भी रखी लेकिन घुटने नहीं टेके। विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित शंभूनाथ शुक्ल के भतीजे रामचन्द्र शुक्ल ने पत्रिका के साथ कई बातों को साझा किया है। रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार अंग्रेजों ने शंभूनाथ शुक्ल को उमरिया जेल में रखा गया था। इस दौरान बेटे की तबीयत काफी खराब हो गई थी। दवा बाहर से मंगाई जाती थी, घर में बेटा तड़प रहा था। पंडित शंभूनाथ के पिता माता प्रसाद शुक्ल फरियाद लेकर पहुंचे और जेल में घर की दास्तां बताई तो अंग्रेजों ने रिहा करने के लिए पं. शंभूनाथ के सामने शर्त रख दी। रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार कहा गया था कि अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छोड़ दो, इसके एवज में तहसीलदार बना देंगे। घर में बेटा तड़प रहा था, उनको देश सेवा का जूनून था। उन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार कुछ दिन बाद दवा और इलाज न मिल पाने की वजह से बेटे की मौत हो गई थी।
असहयोग आंदोलन से सीएम तक सफर
शहडोल के निर्माता के रूप में पहचान रखने वाले पं. शंभूनाथ का जीवन सफरसंघर्ष और प्रेरणादायी रहा है। 18 दिसंबर 1903 जन्म हुआ था। इसके बाद इलाहाबाद में पढ़ाई हुई। प्रयाग विश्वद्यिालय इलाहाबाद से 1926 में बीए और सन 1928 में एलएलबी की डिग्री हासिल कर ली। एलएलबी में भी गोल्ड मेडल मिला था। 1930 में मुंसिफ मजिस्ट्रेट बुढ़ार में वकालत शुरू की थी। पंडित शंभूनाथ शुक्ल भी महात्मा गांधी के 1920 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेकर जेल भी पहुंचे थे। 1945 में रीवा महाराजा के कानूनी सलाहकार नियुक्त हुए। 1952 में विंध्यप्रदेश विस अमरपुर से सदस्य निर्वाचित हुए। और विन्धप्रदेश के निर्विरोध सीएम बने।
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