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शाहडोल

भ्रष्टाचार की रीढ़ तोड़े बिना नहीं होगा आदिवासी समुदाय का भला

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक आज भी नहीं है आदिवासियों की पहुंच
 

शाहडोलMar 30, 2018 / 02:18 pm

Akhilesh Shukla

Spine of curruption without breaking will not be Good of tribal

@शिवमंगल सिंह
शहडोल- योजनाएं-घोषणाएं, वादे-दावे, हमदर्दी तो आदिवासियों के खाते में बहुत आ चुकी और आती रहती है, लेकिन उनके हालात जस के तस हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा तक उनकी आज भी पहुंच नहीं है। पुरानी पीढ़ी का 50 साल से अधिक का जीवन नहीं है और नई पीढ़ी कुपोषण का शिकार है। पूरा समुदाय वन संपदा यानि महुआ और तेंदूपत्ता पर निर्भर है। शहरी इलाकों से जुड़े कुछ गांवों में जरूर स्थितियों में मामूली बदलाव आया है, वह भी शिक्षा के स्तर पर। शिक्षित होने के बाद रोजगार न मिलने से स्थिति फिर वही ढाक के तीन पात जैसी हो जाती है।

सरकार ने आदिवासियों के कल्याण के लिए खजाने का मुंह खोला हुआ है। लेकिन जितनी राशि दिल्ली और भोपाल से जारी की जाती है वह जिला मुख्यालयों से आगे नहीं बढ़ पाती। सरकार दावा करती है कि आदिवासियों के विकास के लिए 25862 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। सवाल ये है कि इन आदिवासियों तक पहुंचा कितना है?

जमीन पर हालात खराब से खराब स्थिति में पहुंच रहे हैं। हाल ही में महिला बाल विकास ने सर्वे कराया उसमें शहडोल में ढाई हजार से अधिक बच्चे अतिकुपोषित मिले हैं। जिसमें 70 फीसदी से अधिक बच्चे आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पिछले दस महीने में 22 हजार गर्भवती महिलाएं एनीमिक मिलीं हैं, 900 बच्चों की मौत हुई है। पिछले 10 महीने में ही 55 से अधिक प्रसूताओं को काल ने ग्रस लिया। इन पीडि़तों में से अधिकांश आदिवासी समुदाय से ही आते हैं। कुल मिलाकर आंकड़े बताने के पीछे मकसद ये है कि सरकार ने एक नहीं कई योजनाएं अपने स्तर पर चलाई हुई हैं लेकिन वंचितों और पिछड़ों तक उसका लाभ नहीं पहुंच रहा है।

सरकार गर्भवती महिलाओं का कुपोषण मिटाने के लिए नगद पैसे दे रही है, उनका टीकाकरण कराया जाता है, मुफ्त में आयरन की गोलियां दी जाती हैं, आंगनबाड़ी केंद्रों से भी पोषण आहार मिलता है, इसके बावजूद ये हालात हैं। असल में सरकारी तंत्र में फैला भ्रष्टाचार और बदनीयती की वजह से इन गरीबों का भला नहीं होता। गरीब महिलाएं पोषाहार से तो वंचित हो ही जाती हैं, गर्भावस्था में लगने वाले टीके और जांच आदि में भी इनके साथ भेदभाव किया जाता है।

इसके अलावा अस्पतालों में इन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं हैं। यही हाल कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों का है। बच्चों के लिए एनआरसी सेंटर तो बना दिए गए हैं लेकिन उनमें कुपोषित बच्चों को भर्ती ही नहीं किया जाता। एनआरसी सेंटर बंद पड़े रहते हैं। इन कुपोषित बच्चों की देखभाल भी अच्छे से नहीं की जाती। कुल मिलाकर स्थिति ये है कि सरकार चाहे जितनी योजनाएं बना ले, कितनी भी घोषणाएं कर ले हालात में बहुत परिवर्तन आने वाला नहीं है।

यदि कुछ बदलाव लाना है तो उसके लिए भ्रष्टाचारियों की रीढ़ तोडऩी पड़ेगी। उसके लिए सरकार को हिम्मत जुटानी पड़ेगी। सत्ताधारी नेताओं, अफसरों के आसपास जो भ्रष्ट लोगों का जमावड़ा है, उसकी सफाई बहुत जरूरी है। जब तक भ्रष्टाचार के घुन पर कीटनाशक नहीं डाला जाएगा तब तक आदिवासी समुदाय विकास की मुख्यधारा में नहीं आ सकता और इसी तरह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता रहेगा।

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