50 थैलीसीमिया, 200 सिकलसेल के मरीज
जिला अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार जिले में 50 से ज्यादा थैलीसीमिया पीडि़त हैं। इसमें कई मासूम भी शामिल हैं। इसके अलावा सिकलसेल के मरीज लगभग 200 शामिल हैं। इन्हें अक्सर खून की जरूरत पड़ती है। शरीर में खून न बनने की वजह से इन्हें बाहर से खून चढ़ाया जाता है। वार्ड न होने के कारण कभी प्राइवेट वार्ड में खून चढ़वाना पड़ता है तो कभी जनरल और आईसीयू वार्ड में खून चढ़ाना पड़ता है।
यह है थैलीसीमिया और सिकलसेल
शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं में होने वाली अनियमित वृद्धि से सिकलसेल होता है। सिकलसेल होने के बाद लाल रक्त कोशिकाओं में हिमोग्लोबिन वहन करने की क्षमता खत्म हो जाती है। इससे शरीर में काफी मात्रा में कमी होने लगती है। इसी तरह थैलीसीमिया भी अधिकांशत अनुवांशिक तौर पर मिलने वाली बीमारी है। इससे हिमोग्लोबिन बनने में दिक्कत आती है। थैलीसीमिया में रक्त की काफी कमी होती है और बाहर से खून चढ़ाना पड़ता है।
ब्लड बैंक का सहारा, नि:शुल्क दे रहे खून
जिला अस्पताल के ब्लड बैंक में थैलीसीमिया और सिकलसेल के मरीजों को नि:शुल्क खून देने की व्यवस्था की गई है। ब्लड बैंक प्रबंधन की मानें तो हर माह 50 से 60 यूनिट खून थैलीसीमिया और सिकलसेल से पीडि़त मरीजों को दिया जाता है। जिन्हे बिना एक्सचेंज के खून उपलब्ध कराया जा रहा है। कई मरीज ऐसे हैं जिन्हे 15 दिन में भी खून देना पड़ता है। हालांकि ब्लड सेपरेशन यूनिट के शुरू होने से फिल्टर ब्लड के साथ अब पैक्ड सेल भी देना आसान हो गयाहै।
वार्ड न होने से इंफेक्शन का खतरा
खून चढ़ाने वक्त थैलीसीमिया पीडि़त मरीजों को संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। थैलीसीमिया वार्ड न होने की वजह से मजबूरी में कहीं पर भी खून चढ़वाना पड़ता है, इससे मरीजों में इंफेक्शन का खतरा काफी रहता है। हालाकि हाल ही में सिविल सर्जन डॉ उमेश नामदेव ने निर्देश दिए हैं कि थैलीसीमिया और सिकलसेल के मरीजों को जरूरत पडऩे पर आईसीयू वार्ड में भर्ती करके खून चढ़ाया जाए।
राहत देने का हमारा हरसंभव प्रयास
थैलीसीमिया और सिकलसेल पीडि़त मासूमों के लिए अस्पताल प्रबंधन हरसंभव प्रयास कर रहा है। हम सुविधाएं और बेहतर इलाज देने के लिए कार्ययोजना भी बना रहे हैं। अस्पताल प्रबंधन अब आईसीयू में भर्ती कर इलाज कर रहा है। जल्द वार्ड की भी व्यवस्था की जाएगी।
डॉ. सुधा नामदेव, पैथालाजिस्ट जिला अस्पताल शहडोल।