तीन उद्देश्य के साथ शुरू हुआ था मेला
बाणगंगा मेले की शुरुआत तीन उद्द्ेश्य के साथ हुई थी। पहला था अपार जनसूमह का एक स्थान पर इकट्ठा होना। जिससे अपनी बात आसानी से दूर-दूर फैलाई जा सके। दूसरा राजनैतिक शक्ति बढ़ाना और तीसरा बाणगंगा कुंड की पाव महिमा बनाए रखते हुए मकर संक्रांति पर यहां स्नान करने के लिए आने वालों के लिए सांस्कृतिक आयोजन।
बाणगंगा मेले की शुरुआत तीन उद्द्ेश्य के साथ हुई थी। पहला था अपार जनसूमह का एक स्थान पर इकट्ठा होना। जिससे अपनी बात आसानी से दूर-दूर फैलाई जा सके। दूसरा राजनैतिक शक्ति बढ़ाना और तीसरा बाणगंगा कुंड की पाव महिमा बनाए रखते हुए मकर संक्रांति पर यहां स्नान करने के लिए आने वालों के लिए सांस्कृतिक आयोजन।
125 साल पुराना है ये मेला
बांण गंगा मेले का नाम आते ही जहन मे 125 वर्ष पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। इस मेले की शुरूआत तात्कालीन रीवा महाराजा गुलाब सिंह ने 1895 मे कराई थी। तब से बांणगंगा मे निरंतर मेले की परांपरा चली आ रही है। मेले का उदेश्य स्नान, दान व पुण्य की मिसाल कल्चुरी कालीन एक हजार पहले बने विराट मंदिर के पं्रागण में अपनी अमिट छाप छोड़ रही है।
मेले का स्वरूप भी रहट से आकाशीय झूले तक पहुंच चुका है। मेले में लोगों का मेल मिलाप और उत्साह पुरानी रीति रिवाज को समेटे हुए आदिवासियों के प्रकृति प्रेम का गवाह बना हुआ है। जब मेले की शुरुआत हुई थी तब तीन दिन तक ही मेला रहता था। जो अब 5 दिन तक भरने लगा है।
बांण गंगा मेले का नाम आते ही जहन मे 125 वर्ष पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। इस मेले की शुरूआत तात्कालीन रीवा महाराजा गुलाब सिंह ने 1895 मे कराई थी। तब से बांणगंगा मे निरंतर मेले की परांपरा चली आ रही है। मेले का उदेश्य स्नान, दान व पुण्य की मिसाल कल्चुरी कालीन एक हजार पहले बने विराट मंदिर के पं्रागण में अपनी अमिट छाप छोड़ रही है।
मेले का स्वरूप भी रहट से आकाशीय झूले तक पहुंच चुका है। मेले में लोगों का मेल मिलाप और उत्साह पुरानी रीति रिवाज को समेटे हुए आदिवासियों के प्रकृति प्रेम का गवाह बना हुआ है। जब मेले की शुरुआत हुई थी तब तीन दिन तक ही मेला रहता था। जो अब 5 दिन तक भरने लगा है।
ऐेसे हुई बाणगंगा मेले की शुरुआत
जानकार बताते हैं कि मेला आयोजन के लिए महाराजा गुलाब सिंह ने एक कमेटी बनाई थी। जिसमें सोहागपुर इलाकेदार राजेन्द्र सिंह शारदा कटारे,व ठाकुर साधू सिंह शामिल रहे। इन्हें सोहागपुर इलाकेदार का नजदीकी माना जाता था। इसी कमेटी ने बांणगंगा में मेला लगाने का प्रस्ताव पास किया गया। और इस मेले का प्रचार प्रसार करने के लिए गांव-गांव डुग्गी (मुनादी कराना) पिटवाकर प्रचार-प्रसार किया गया। उस जमाने में भी रहट झूले का चलन था। जो अपनी आवाज के लिए लोगों के बीच एक खास पहचान रखता था। बदलते वक्त के साथ अब मेले ने भी आधुनिक रूप ले लिया है। भजन कीर्तन से लेकर कवि सम्मेलन,नृत्य
मंण्डली मेले मे मनोरंजन का साधन बन रही हैं।
जानकार बताते हैं कि मेला आयोजन के लिए महाराजा गुलाब सिंह ने एक कमेटी बनाई थी। जिसमें सोहागपुर इलाकेदार राजेन्द्र सिंह शारदा कटारे,व ठाकुर साधू सिंह शामिल रहे। इन्हें सोहागपुर इलाकेदार का नजदीकी माना जाता था। इसी कमेटी ने बांणगंगा में मेला लगाने का प्रस्ताव पास किया गया। और इस मेले का प्रचार प्रसार करने के लिए गांव-गांव डुग्गी (मुनादी कराना) पिटवाकर प्रचार-प्रसार किया गया। उस जमाने में भी रहट झूले का चलन था। जो अपनी आवाज के लिए लोगों के बीच एक खास पहचान रखता था। बदलते वक्त के साथ अब मेले ने भी आधुनिक रूप ले लिया है। भजन कीर्तन से लेकर कवि सम्मेलन,नृत्य
मंण्डली मेले मे मनोरंजन का साधन बन रही हैं।