बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था। कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?”
कहते कहते उनकी आँखें भर आईं।
घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं। लड़की भी उदास हो गयी।
कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा” दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए।
दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गई। बोले.- हां हां समधी जी, जो आप हुकुम करें।
लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी ओर खिसकाई और धीरे से उनके कान में बोले- दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे में बात करनी है।
दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुए आँखों में पानी लिए हुए बोले बताइए समधी जी, जो आप को उचित लगे, मैं पूरी कोशिश करूंगा।
समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुए बस इतना ही कहा- आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे। थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे, मुझे सब स्वीकार है, पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना। वो मुझे स्वीकार नहीं। क्योंकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी “कर्ज वाली लक्ष्मी” मुझे स्वीकार नहीं। मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए, जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी।
दीनदयाल जी हैरान हो गए। उनसे गले मिलकर बोले- समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा।
सीख
प्रस्तुतिः सोशल मीडिया से