शहर के महामंडलेश्वर स्वामी विद्यानंद महाराज का शनिवार देररात देवलोकगमन हो गया।
शाजापुर•Sep 10, 2018 / 12:25 am•
Lalit Saxena
शहर के महामंडलेश्वर स्वामी विद्यानंद महाराज का शनिवार देररात देवलोकगमन हो गया।
शाजापुर. शहर के महामंडलेश्वर स्वामी विद्यानंद महाराज का शनिवार देररात देवलोकगमन हो गया। जैसे ही यह खबर उनके अनुयायियों को मिली तो नाग-नागनी रोड स्थित अखंड आश्रम पर भीड़ जुटना शुरू हो गई। भजन-कीर्तन के साथ पूरी रात भक्त यहां पर जमे रहे। सुबह भी दर्शन के लिए लोग पहुंचे। दोपहर को आश्रम से अंतिम दर्शन यात्रा निकाली गई। इसमें बड़ी संख्या में शहरवासियों सहित आसपास के जिलों, अन्य प्रदेशों से आए अनुयायी, जनप्रतिनिधि, गणमान्य व अन्य शामिल हुए। आश्रम में ही उनको समाधिस्थ किया गया।
55 वर्षों से विद्यानंद महाराज शहर में रह रहे थे। गुरुपूर्णिमा पर वे सोनकच्छ पहुंचे थे। जहां उन्होंने दोबारा न आने की बात कही थी। इसके बाद से ही उनका स्वास्थ्य लगातार खराब चल रहा था। शनिवार रात को उन्होंने अंतिम सांस ली। रविवार दोपहर अखंड आश्रम से अंतिम दर्शन यात्रा शुरू हुई जो प्रमुख मार्गों से होती हुई अखंड आश्रम पहुंची। यहां उनके कक्ष में उन्हें विधि-विधान से समाधि बनाकर समाधिस्थ किया गया। अंतिम दर्शन यात्रा में सबसे आगे बंदूक से उन्हें सलामी दी गई। इसके पीछे बैंड पर भक्ति धुन बजती रही। इसके पीछे बड़ी संख्या में भक्त स्वामी विद्यानंद के ‘शिवोह्मÓ का उद्घोष करते हुए चल रहे थे। इनके पीछे पुष्पों से सुसज्जित रथ में स्वामी का पार्थिव शरीर को बैठाया हुआ था। इस रथ के पीछे महिलाएं कीर्तन करते हुए चल रही थी। सबसे पीछे भजन-मंडली भी चल रही थी।
सिंहस्थ में मिली थी महामंडलेश्वर की उपाधि
स्वामी विद्यानंद महाराज को 1992 के सिंहस्थ में 100८ की उपाधि दी गई थी। इसके बाद वर्ष 2004 के उज्जैन सिंहस्थ में ही उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि मिली थी। अलग-अलग शहरों में उनके आश्रम भी संचालित हो रहे हैं। अंतिम दर्शन के लिए शाजापुर पहुंचे भक्तों ने बताया कि विद्यानंद महाराज ने शरीर त्यागा है, लेकिन उनकी आत्मा यही है और हमें उनका आशीर्वाद हमेशा मिलता रहेगा।
85 वर्ष की उम्र में त्यागा शरीर
स्वामी हर वर्ग के लिए आस्था का केंद्र रहे और पिछले 25 सालों से अखंड आश्रम में भंडारे का संचालन किया जा रहा था। यहां रोज कई निराश्रित भोजन ग्रहण करते थे। विद्यानंद महाराज 30 साल की उम्र में शाजापुर आए थे और तभी से वे आश्रम में निवासरत थे और उन्हें 55 वर्ष हो गए थे। छवि ऐसी थी कि हर वर्ग के लोग उनका आशीर्वाद तो लेते ही थे। साथ ही यहां होने वाले आयोजन को लेकर विचार किया करते थे।
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