तत्कालीन समय में जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत बोलाई से दीपसिंह यादव लगातार तीन बार निर्विरोध सरपंच चुने गए थे। साफ-सुथरी छवि और विरोधियों को भी गले लगाने के व्यवहार के चलते यादव को मोहन बड़ोदिया जनपद अध्यक्ष बनाया गया था। यहां पर कार्यकाल पूरा होने के समय शाजापुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की विधायक ताराज्योति शर्मा काबिज थीं, लेकिन शर्मा को बीमारी के कारण लगातार अस्वस्थ्ता बनी रही और बाद में करीब ढाई साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद सन 1983 में उनका निधन हो गया। इस निधन के बाद शाजापुर विधानसभा में पहली बार उपचुनाव की स्थिति बनी। इस सीट से चुनाव लडऩे के लिए कई नेताओं ने जोर आजमाइश भी की।
इस उपचुनाव में यादव ने जीत हासिल की और करीब ढाई साल तक विधायक बने रहे। हालांकि विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने के बाद पार्टी ने दोबारा इन्हें टिकीट दिया, लेकिन फिर इन्हें जीत हासिल नहीं हुई।
अर्जुनसिंह और माधवराव सिंधिया ने गांव-गांव घुमकर किया था प्रचार
मार्केटिंग सोसायटी शाजापुर के पूर्व अध्यक्ष ठाकुर विरेंद्रसिंह गोहिल ने बताया कि उपचुनाव के समय उनके जीजाजी दीपसिंह यादव को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह पसंद करते थे। इसके चलते यादव को टिकीट दिया गया था। इस उपचुनाव में अर्जुनसिंह और माधवराव सिंधिया ने विधानसभा के गांव-गांव में घुमकर यादव के लिए प्रचार किया था। वहीं दूसरी ओर यादव ने लोगों व्यक्तिगत रूप से मिलकर चुनाव प्रचार किया था। इसका परिणाम रहा कि उन्हें उपचनुाव में जीत हासिल हुई थी।
स्वयं के खिलाफ कार्य करने वालों को भी कराया था माफ
सन 1983 में उपचुनाव में जीत हासिल करने के बाद करीब ढाई साल का कार्यकाल दीपसिंह यादव ने पूरा किया था। इसके बाद सन 1985 में पार्टी ने दोबारा उन्हें शाजापुर विधानसभा से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन इस दौरान कई कांग्रेसियों ने पार्टी के खिलाफ जाकर यादव को पराजित कराने के लिए कार्य किया था। इस चुनाव में यादव की हार के बाद कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने पार्टी के खिलाफकार्य करने वालों को अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए नोटिस जारी किया था। ऐसे में यादव ने स्वयं तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह के पास पहुंचकर सभी नोटिस का जवाब देते हुए कहा था कि शाजापुर में इन्हीं लोगों से कांग्रेस है।