रेलवे सुरक्षा बल हेल्पलाइन नंबर 182 के संबंध में जागरुकता अभियान चलाया गया। आरपीएफ के जवान ने माइक लाउडस्पीकर के माध्यम से इंदौर-कोटा सुपर फास्ट एक्सप्रेस (22984) और बांद्रा-झांसी एक्सप्रेस (11104) ट्रेन के स्टेशन पर पहुंचने पर ट्रेन की प्रत्येक बोगी के सामने घुमकर जागरुकता फैलाई। आरपीएफ के अनुसार ये अभियान रेलवे बोर्ड से प्राप्त निर्देशों के तहत पूरे भोपाल मंडल में चलाया जा रहा है। इसमें मुख्य रूप से लंबी दूरी की ट्रेन जो कि बड़े शहरों से जुड़ी हुई है उन ट्रेन के समय यात्रियों को जागरुक किया जा रहा है।
ये किया अनाउंसमेंट
लाउड स्पीकर के माध्यम से आरपीएफ ने यात्रियों को बताया कि यात्री सतर्क रहे, सावधान रहे, सुरक्षित रहे। मानव तस्करी या बंधवा मजदूरी का शिकार होने से बचे। यदि कोई मालिक अपने मजदूर को कर्ज में दिए गए रुपए-पैसे के बदले जबदरस्ती काम करवाता है, पैसों की मजदूरी नहीं देता है उसे या उसके परिवार को कहीं आने-आने से रोकता है तो ऐसा करना कानून जुर्म है। अपने साथ या अपने आसपास हो रहे ऐसे अपराधों से बचने के लिए मदद के लिए रेलवे आरपीएफ हेल्पलाइन नंबर 182 पर तत्काल संपर्क करें। आप जिला प्रशासन या अपने क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता से भी संपर्क कर सकते है। याद रखे आपकी एक पहल कईयों की जिंदगी बचा सकती है।
मोहन बड़ोदिया कॉलेज में मनाई साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती
शाजापुर.
शासकीय कॉलेज मोहन बड़ोदिया में बुधवार को साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर हिंदी के डॉ. विमल लोदवाल ने प्रेमचंद के आरंभिक जीवन एवं उनके रचनाकर्म पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रेमचंद को एक महान उपान्यासकार बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रभारी प्राचार्य डॉ. बीएस विभूति ने पे्रमचंद को सच्चे अर्थों में मानवीय मूल्यों एवं आदर्शों के लिए लडऩे वाला साहित्यकार बताया।
डॉ. विभूति ने कहा कि यदि रूस के मैक्सिम गोर्की पूरी फिल्म बनाते हंै और चीन के लुशून बोध कथा लिखते हैं तो प्रेमचंद एक कमर्शियल ब्रेक की तरह हैं जिसका होना आवश्यक है। ‘गोदान’ में जहां सहजीवन को सहेजने का प्रयास है। तो ईदगाह में हामिद का चिमटा संवेदना की पराकाष्ठा है। उन्होंने कहा कि जब तक वर्ग संघर्ष और शोषण है तब तक प्रेमचंद को भुलाया नहीं जा सकता। साहूकार की जगह भू-मंडलीकरण में आज विश्व बैंक ने ले लिया है, लेकिन शोषण आज भी जारी है। विषमता जब तक खत्म नहीं होती प्रेमचंद की रचना तब तक प्रासंगिक बनी रहेगी। हिंदी साहित्य में प्रेमचंद आंचलिक आख्यानों के आदि पुरुष हैं। उनके बाद ही रेणु और श्रीलाल शुक्ल का नाम लिया जा सकता है। कार्यक्रम में गजराज अहिरवार, डॉ. वंदना मंडोर, अभय भौंसले, संजय पड़ोले साहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे। संचालन डॉ. राजकुमार सूत्रकार ने किया तथा आभार सायरा बानो ने माना।