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सीएम और डिप्टी सीएम मौर्या पूरा जोर लगाने के बाद भी जिसे नहीं हरा पाए, अखिलेश ने उसे फिर मैदान में उतारा

भाजपा के सामने सपा ने खड़ी की बड़ी चुनौती
उपचुनाव में तबस्सुम हसन के हाथों गंवानी पड़ी थी भाजपा को अपनी सीट

शामलीMar 16, 2019 / 06:59 pm

Iftekhar

Akhilesh

Akhilesh yadav

शामली. उत्तर प्रदेश के दिग्गज दिवंगत भाजपा नेता हुकुम सिंह की कर्मभूमि कैराना लोकसभा सीट एक बार बार बहुत ही अहम होने जा रही है। दरअसल, सपा-बसपा और रालोद के बीच गठबंधन होने के बाद यह सीट समाजवादी पार्टी (सपा) के कोटे में आई है। सपा ? ने वर्तमान रालोद सांसद तबस्सुम हसन को इस सीट से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। गौरतलब है कि भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर मई 2018 में हुए उपचुनाव में सपा-बसपा और रालोद के बीच हुए गठबंधन के बाद भाजपा को ये सीट गवानी पड़ी। इस चुनावों में सपा और रालोद के बीच हुए समझौते के तहत सपा से जुड़ीं तबस्सुम हसन को रालोद के चुनाव चिन्ह से चुनावी मैदान में उतारा गया। इसके बा? बसपा ?? और कांग्रेस ने भी समर्थन में अपना प्रत्याशी नहीं उतारा। लिहाजा, गठबंधन के तबस्सुम हसन और भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह के बीच कांटे का मुकाबला हुआ। लेकिन माना जाता है कि जाट मतों का रालोद के पक्ष में ज्यादा झुकाव होने से भाजपा को अपनी यह सीट गवांनी पड़ी।

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कांग्रेस बिगाड़ सकती है खेल
कैराना लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने जहां गठबंधन प्रत्याशी का समर्थन करते हुए अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था। तब रालोद की तबस्सुम हसन 4,81,182 मले थे। वहीं, भाजपा की प्रत्याशी और दिवंगत भाजपा नेता हुकुम सिंह की पुत्री मृगांका सिंह को 4,36,564 मत मिले थे। लेकिन इस बार गठबंधन नहीं होने की वजह से कांग्रेस भी अपना प्रत्याशी मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है। ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं। हालांकि, इस सीट के पिछले तीन चुनावों का इतिहास बताता है कि यहां के मतदाताओं ने हर बार नई पार्टी और नया सांसद चुना है।

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गौरतलब है कि कैराना लोकसभा सीट पर मुख्यत: पूर्व सांसद हुकुम सिंह और हसन परिवार के बीच ही चुनावी मुकाबला होता रहा है। इससे पहले साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों का असर दिखा। हिन्दू मतों का भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण हो गया और मुस्लिमों के मत सपा के नाहिद हसन और बसपा के कंवर हसन के दो खेमे में बंट गए। इस चुनाव में भाजपा के हुकुम सिंह को 5,65,909 मिले थे। वहीं, सपा के नाहिद हसन को 3,29,081 और बसपा के कंवर हसन को 1,60,414 मत मिले थे। इसके अलावा रालोद के करतार भड़ाना को 42,706 मत मिले थे। इस चुनाव में खास बात यह रही थी कि बसपा का परंपरागत अधिकांश वोटर भी भाजपा के पाले में पहुंच गया। इसी के चलते भाजपा के हुकुम सिंह ने 2.36 लाख मतों के भारी अंतर से हराया। रालोद प्रत्याशी करतार भड़ाना तो 42 हजार मतों पर ही सिमट गए।

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वहीं, इससे पहले साल 2009 में हुए चुनाव में बसपा प्रत्याशी के तौर पर उतरीं तबस्सुम बेगम और हुकुम सिंह में सीधी टक्कर हुई थी। बसपा की तबस्सुम हसन 2,83,259 मतो के साथ विजयी रही थी। वहीं, भाजपा के हुकुम सिंह 2,60,796 मतो के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। तब सपा से शाजान मसूद चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें मात्र 1.24 लाख वोट ही मिले। तब मुस्लिम मतों के बंटवारे के बावजूद बसपा के परंपरागत अनुसूचित जाति के मतों ने तबस्सुम हसन की नैया पार लगा दी।

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