विशेष बात यह है कि संस्थागत प्रसव के लिए जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदन योजना चल रही है, वहीं आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन राशि दी जाती है और 108 एंबुलेंस व जननी एक्सप्रेस वाहन चल रहे हैं।
विभागीय आंकड़ों के मुताबिक 1 अप्रेल से 30 जून की अवधि में जिले के आदिवासी विकासखंड कराहल के क्षेत्र में कुल 503 प्रसव हुए, जिसमें से 323 प्रसव तो संस्थागत (अस्पतालों में) हुए, जबकि 180 प्रसव घरों पर ही हुए हैं, जो कुल प्रसव का 35.78 फीसदी है। जाहिर है महज तीन माह की अवधि में कराहल ब्लॉक में ही 180 प्रसव घरों पर हो गए हैं, जो विभागीय लापरवाही और अकर्मण्यता को साफ दर्शाता है। इन सबके बावजूद विभागीय अफसर जिले के औसत संस्थागत प्रसव को आंकड़ों में पेश कर संभाग में अव्वल होने का दंभ भरते हैं, लेकिन जिस आदिवासी क्षेत्र में संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने की सबसे ज्यादा जरुरत है, वहां विभाग फिसड्डी नजर आ रहा है।
विभागीय अफसरों के तमाम दावों के बाद भी श्योपुर जिले में शत-प्रतिशत संस्थागत प्रसव दूर की कौड़ी नजर आता है। हालांकि जिले में कुल औसत 88 फीसदी संस्थागत प्रसव है, लेकिन ये स्थिति भी कम चिंताजनक नहीं है, जबकि जिले में जिला अस्पताल के साथ ही कई डिलेवरी पाइंट जिले में बनाए हुए हैं। बताया गया है कि एक अप्रेल से 30 जून की अवधि में जिले में कुल 2845 प्रसव हुए, जिसमें से 2517 तो संस्थागत हुए, लेकिन 317 प्रसव घर पर हुए हैं, जो विभागीय नाकामी को साफ उजागर करता है।
जहां एक ओर कराहल विकासखंड में घर पर प्रसव होने को आंकड़ों की स्थिति गंभीर है, वहीं दूसरी ओर जिले के विजयपुर और बड़ौदा क्षेत्रों में भी अभी घरों पर प्रसव की स्थिति कम नहीं है। विजयपुर में घर पर प्रसव अभी भी 11 फीसदी तो बड़ौदा क्षेत्र में ये 10 फीसदी के आसपास है।
संस्थागत प्रसव की स्थिति लगातार बढ़ रही है, जिले में संस्थागत प्रसव की स्थिति पूरे संभाग में सबसे ज्यादा है। रही कराहल की बात तो उस क्षेत्र में नेटवर्क की प्रॉब्लम रहती है, लिहाजा समय पर सूचना नहीं मिल पाती है।
सौमित्र बुधोलिया
डीपीएम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन श्योपुर