20 रुपए में रजाई-गद्दे मिलते हैं किराए पर
अस्पताल से मरीजों को मिलने वाला कंबल इतना पतला है कि उससे ठंड नहीं बचती। ऐसे में मरीज को ठंड से बचाने के लिए परिजन 10 रुपए किराए पर रजाई लेकर आते हैं। परिजनों को अपने लिए रजाई और गद्दा दोनों किराए से लाने पड़ते हैं। यह दोनों 20 रुपए किराए पर मिल जाते हैं। अस्पताल के बाहर दुकानदारों ने इसे कमाई का जरिया बना रखा है।
बेडशीट रोज बदलने के हैं नियम
अस्पताल में भर्ती मरीज के पलंग की बेडशीट, तकिया और कंबल रोज बदलना चाहिए। ताकि मरीज को इंफेक्शन न हो। लेकिन जिला अस्पताल में बेडशीट और तकिये के कवर बदलना तो दूर ठंड से बचाव के लिए पर्याप्त कंबल और चादर नहीं हैं। ऐसे में मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
सुबह आठ बजे के बाद लगता है चार्ज
किराए पर मिलने वाले रजाई-गद्दों को सुबह आठ बजे तक दुकानदार तक पहुंचाना होता है। इसके बाद अतिरिक्त चार्ज लगना शुरू हो जाता है ऐसे में मरीज के परिजन सबसे पहले रजाई-गद्दा वापस करने जाते हैं। अस्पताल के बाहर जितनी भी दुकानें हैं सब पर रजाई-गद्दे मिलते हैं। दरअसल जिला अस्पताल में गांव-देहात से ज्यादा मरीज आते हैं उनके परिजन ठंड से बचाव के लिए गर्म कपड़े नहीं लेकर आ पाते इसलिए भी इनकी बिक्री होती है।
10 दिन से ला रहे किराए से रजाई
पत्नी भर्ती है। अस्पताल से मिलने वाले कंबल से ठंड नहीं बचती इसलिए किराए से रजाई लानी पड़ती है। पिछले दस दिन से रजाई किराए से ला रहा था, लेकिन अब पैसे कम पडऩे लगे तो बंद कर दी।
रघुवीर, निवासी उतनवाड़
सुबह आठ बजे वापस कर आते हैं
अस्पताल से जो लाल कंबल मिलता है उससे ठंड नहीं बचती, इसलिए किराए से रजाई लेकर आना पड़ती है। शाम को लेकर आते हैं और सुबह आठ बजे वापस कर आते हैं, क्योंकि दूसरे दिन का चार्ज लग जाता है।
इरशाद, भर्ती मरीज
बच्चा भर्ती है, लाते हैं किराए पर रजाई
शिशु गहन चिकित्सा इकाई में नवजात भर्ती है। ऐसे में ठंड से बचने के लिए रजाई-गद्दा लाने पड़ते हैं। 20 रुपए दोनों का किराया देना पड़ता है। 12 दिन से अस्पताल में हैं।
धीरज, निवासी सेमल्दा हबेली