बीते पांच सालों की स्थिति देखें तो घडिय़ालों की संख्या में 62.98 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि मगरमच्छ 75.62 फीसदी बढ़े हैं। विशेष बात यह है कि बीते आठ साल की स्थिति में घडिय़ाल जहां दुुगुने बढ़े हैं, वहीं मगरमच्छ डेढ़ गुना बढ़ गए हैं। आठ सालों के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि मगरमच्छ की वृद्धिदर 139.32 फीसदी रही है, जबकि घडिय़ाल की वृद्धिदर 107.29 फीसदी है। जाहिर है लगातार बढ़ रहा मगरमच्छ का कुनबा घडिय़ालों की बस्ती के लिए घातक सिद्ध हो रहा है।
श्योपुर, मुरैना और भिंड जिले की सीमा में बह रही चंबल नदी घडिय़ालों के लिए मुफीद नदी है। बताया गया है कि घडिय़ाल संरक्षण क्षेत्र के रूप में ये देश का सबसे अच्छा क्षेत्र है और देश में घडिय़ालों की कुल आबादी का 80 फीसदी हिस्सा चंबल में मिलता है। लेकिन मगरमच्छ की लगातार बढ़ती आबादी से इस चंबल अभयारण क्षेत्र में घडिय़ालों के संरक्षण पर खतरा मंडराने लगा है।
चंबल नदी घडिय़ालों का सबसे बेहतरीन हेबीटेट है, ऐसे में यहां मगरमच्छ का बढऩा अच्छे संकेत नहीं है। चूंकि चंबल का एरिया तो उतना ही है, ऐसे में घडिय़ालों के साथ ही मगरमच्छ का बढऩा भीड़ बढ़ा रहा है। साथ ही मगरमच्छ घडिय़ालों के बच्चों को खा जाते हैं या खदेड़ देते हैं। यदि ऐसे ही मगरमच्छ बढ़े तो ये यहां स्थाई हो जाएंगे और घडिय़ाल बाहर निकल जाएंगे।
ऋषिकेश शर्मा
सेवानिवृत्त रिसर्च ऑफिसर चंबल अभयारण्य, ग्वालियर
वर्ष घडिय़ाल मगर
2019 1876 706
2018 1681 613
2017 1255 562
2016 1162 464
2015 1151 402
२०१४ १०८८ ३९०
2013 948 356
2012 905 295