ये कहानी है रामजीवन पुत्र बाबूलाल नामदेव की, जो मां की कोख से ही नेत्रहीन और पोलियोग्रस्त पैदा हुआ था। उसके माता पिता ने जैसे तैसे उसकी परवरिश की लेकिन जब वह 12-13 साल का था तभी उसके माता-पिता का बीमारी से देहांत हो गया। इसके बाद रामजीवन को जीने के लाले पड़ गए, तो अशोकनगर निवासी उसके मामा ने उसे सहारा दिया। मामा भी उसे कुछ महीने ही रख पाए, इसके बाद उसे घर से निकाल दिया। आखिर कार वह करीब 20-22 साल पहले बदरवास रेलवे स्टेशन पर आ गया। यहां उसने कुछ दिन भीख मांगने का प्रयास किया, लेकिन लोगों ने इतना नहीं दिया कि उसका पेट भर सके। इसके बाद किसी ने उससे कहा कि तू अगर भीख मांगेगा तो तुझे नहीं मिलेगा, लेकिन भगवान ने तुझे इतनी अच्छी आवाज दी है, तू इसे अपनी ताकत क्यों नहीं बनाता?।
रामजीवन का कहना है कि उसके बाद उसने एक रेडियो खरीद कर अकेले ही गाने का रियाज शुरू किया। कुछ दिन में लोग उसे उसका गाना सुनने के बदले पैसे देने लगे और नाम दे दिया ‘सूरदास’। यहीं से उसका नया जन्म हुआ आज ‘सूरदास’ की आवाज के हजारों दीवाने हैं, जो यात्री रेग्यूलर ट्रेनों का सफर करते हैं उनकी की तो स्थिति यह है कि बदरवास और गुना आते ही उनकी आंखें ट्रेन में सूरदास को तलाशने लगती हैं।
सूरदास कहता है कि आज उसे 1900 गाने पूरी रिदम के साथ याद हैं। ‘सूरदास’ के अनुसार देश का प्रत्येक युवा अगर ईश्वर द्वारा उसे दी गई ताकत को पहचान ले तो उसे कभी भीख नहीं मांगनी पड़ेगी, वह अपने हुनर के बूते ही अपनी उदर पूर्ति कर सकता है, क्योंकि ऊपर वाले ने उसे जन्म देने से पहले सोच लिया होता है कि वह अपना पेट कैसे पालेगा? इसी कारण वह उससे सब कुछ छीन कर भी एक ऐसी ताकत देता है जो उसके जीने का जरिया बनती है।