जानकारी के अनुसार खनियांधाना के ग्राम ढोंगा रिजौदा के आदिवासी मजदूर करीब डेढ़ माह पहले मजदूरी करने के लिए भिंड जिले के ग्राम बिजपुरी गए थे। वहां पंद्रह दिन की मजदूरी के बाद लॉक डाउन हो गया तो वे वहीं फंस कर रह गए। इसके बाद 20 अप्रैल को उन्होंने पैदल अपने गांव की ओर कूच किया। इन दो दिनों में उन्हें कई जगह पुलिस मिली, लेकिन हर बार उनसे पूछताछ करने के बाद उन्हें आगे जाने की अनुमति प्रदान कर दी गई।
मजदूरों के अनुसार उन्हें इस दौरान रास्ते में कहीं कुछ खाने पीने को नहीं मिला, जो कुछ वह भिंड से साथ लेकर चले थे, उसके सहारे यहां तक आए हैं। जब ये मजदूर खिन्नी नाका पर पहुंचे तो स्थानीय लोगों ने मामले की जानकारी पत्रिका को दी। पत्रिका ने पूरी स्थिति को समझने के बाद प्रशासनिक दावों की हकीकत को जानने के लिए सीएमएचओ डॉ. एएल शर्मा को मजदूरों की स्क्रीनिंग के लिए फोन पर सूचना दी।
वहीं दूसरी ओर मजदूरों के भोजन और रुकने की व्यवस्था के लिए सीएमओ केके पटेरिया को भी कॉल किया गया। डॉ. शर्मा ने स्क्रीनिंग के लिए टीम भेजने का आश्वासन दिया तो सीएमओ ने भोजन। इसके बाद दीनदयाल रसोई के प्रभारी रमेश कुमार को फोन पर मजदूरों की भोजन व्यवस्था के लिए कॉल किया गया। रमेश कुमार ने एक मजदूर का मोबाइल नंबर और मजदूरों की संख्या तक वाट्सएप पर मंगवा लिया। काफी लंबा समय बीत जाने के बाद भी जब स्क्रीनिंग के लिए कोई चिकित्सकीय अमला नहीं पहुंचा तो सीएमएचओ डॉ. एएल शर्मा को फिर से फोन लगाया तो उन्होंने पांच मिनट में टीम के पहुंचने की बात कही। इस दौरान मजदूरों के खाने के लिए शहर में भोजन वितरण कर रहे महावीर जिनालय ट्रस्ट को भी फोन लगाया गया। इस पूरे घटनाक्रम को पत्रिका ने दो से ढाई घंटे तक वहां खड़े होकर देखा और प्रशासनिक मुस्तैदी को परखने का प्रयास किया। न तो कोई स्वास्थ्य टीम मजदूरों की स्क्रीनिंग के लिए बताए गए स्थान पर पहुंची और न ही नपा का अमला खाना लेकर पहुंचा। महावीर जिनालय ट्रस्ट का वाहन फोन करने के आधा घंटे बाद खाना लेकर पहुंचा और मजदूरों को भोजन उपलब्ध करवाया।
भूखी बेटी का मन बहलाने आंचल से लगाया
यहां बताना होगा कि सुबह के समय जब पत्रिका की टीम खिन्नी नाका पर पहुंची तो एक दो से ढाई साल की मासूम बच्ची भूख से विलख रही थी। वह बार-बार अपनी मां से खाने की मांग कर रही थी, परंतु मां के पास उसे खिलाने के लिए कुछ नहीं था। भूखी मां बार-बार उसे आंचल से लगाकर उसकी भूख मिटाने का प्रयास कर रही थी, परंतु भूखी-प्यासी मां के आंचल से दूध ही नहीं निकला। अंतत: जब सब्जी-पूड़ी का वाहन मौके पर पहुंचा तो सभी लोगों ने खाना खाकर अपनी भूख मिटाई।