शिवपुरी जिले में मत्स्य पालन के लिए 400 ग्राम पंचायतों के तालाब हैं, जबकि 83 सिंचाई विभाग के, 17 तालाब नगर पंचायतों के व 150 निजी तालाबों में मछली का पालन किया जाता है। इन तालाबों में मछली पालन करने वाली 83 समितियां हैं, लेकिन इनमें से 45 समितियां क्रियाशील हैं, जबकि शेष नियमित मछली पालन नहीं करतीं। इन तालाबों में हर साल जिले में 4 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है, जो शिवपुरी जिले में होने वाली खपत को पूरा नहीं कर पाती। इसलिए जिले में में अभी भी आंध्रप्रदेश से ट्रेन के माध्यम से मछली शिवपुरी आती है। जिले में जो समितियां मत्स्य पालन करती हैं, उनमें प्रत्येक समिति में 21 सदस्य होते हैं, जिनमें केवट जाति के लोगों को प्राथमिकता देते हुए उन्हें रोजगार की सुविधा दी जाती है। समिति द्वारा तालाब में मछली का बीज डालने से लेकर उसमें उनके भोजन आदि के लिए दाना भी डाला जाता है, तथा जब मछली तैयार हो जाती है तो शिकारी बुलवाकर उनसे मछली पकड़वाकर बाजार में थोक में बेची जाती है। मछली बेचने से होने वाली आमदनी ही समिति सदस्यों का रोजगार रहता है।
साउथ की मछली पंगास का उत्पादन शिवपुरी जिले के 9 तालाबों में किया जाएगा। इनमें समोहा, पचीपुरा, पारौंच, अकाझिरी, मड़हर, पिपलौदा सहित दो अन्य तालाब हैं। इस मछली के उत्पादन के लिए तालाब में 9 वर्गफीट लंबाई-चौड़ाई के उल्टी मच्छरदानी वाले जाल लगाए जाकर उनमें इसका उत्पादन किया जाएगा। यह मछली 6 माह में तैयार हो जाती है और एक मछली में 40 रुपए की लागत आती है, जबकि वो 100 रुपए में बिकती है।
जिले में कतला व रोहू की डिमांड अधिक रहती है। इसका स्पॉन (सबसे छोटा बीज) 1200 रुपए में 1 लाख मिलते हैं, जबकि बड़ा बच्चा (जिसका वजन 125 ग्राम होता है) 2 रुपए प्रति नग में बिकता है। यह मछली लगभग 9 माह में तैयार होती है, लेकिन इसकी लागत बहुत कम यानि 20 रुपए प्रति मछली ही आती है। जबकि तैयार होने के बाद यह 140 रुपए किलो तक बिकती है। चूंकि इसके लिए समिति को लंबा इंतजार करना पड़ता है। यानि प्रति मछली 60 रुपए मिलेगा। इस मछली के उत्पादन में ऐसे तालाब चिह्नित किए हैं, जिनमें गर्मियों में भी 35 फीट पानी रहता है। इस मछली का साल में दो बार उत्पादन लिया जा सकता है।
जिले में मत्स्य पालन करने वाली समितियां जब तालाब में तैयार हुई मछली को निकलवाती हैं, तो उसके लिए वो बिहार के शिकारी बुलाते हैं। यह शिकारी न केवल मछली पकडऩे में एक्सपर्ट होते हैं, बल्कि इनके पास जाल आदि भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं। यह शिकारी 15 से 20 रुपए प्रति मछली के हिसाब से पकडऩे का चार्ज लेते हैं। यानि बिहार के शिकारियों को भी मत्स्य पालन से रोजगार मिला हुआ है।
जिले के तालाबों में हर साल 4 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है, जबकि मत्स्य महासंघ के 3 जलस्त्रोतों मड़ीखेड़ा, मोहिनी पिकअप, हरसी डैम हैं। जिले में पहली बार पंगास मछली का उत्पादन किया जा रहा है।
आरबी शर्मा, मत्स्य निरीक्षक शिवपुरी