तथागत भगवान बुद्ध ने अपने जीवन काल के सर्वाधिक 14 वर्ष श्रावस्ती में बिताए थे। यहीं से उन्होंने दुनिया को सत्य,अहिंसा व शांति का संदेश दिया। श्रावस्ती में ही भगवान संभवनाथ और चन्द्रप्रभु का जन्म हुआ। जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी का भी चार कल्याणक भी यहीं हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पुत्र लव की राजधानी भी श्रावस्ती थी। इसका जिक्र रामायण के उत्तर कांड 1-22 श्रावस्तीति पुरी रम्या श्रावीता च लवस्य च। तथा वायु पुराण, अ. 88-198 में है। इसमें लिखा है कि उत्तर कोसले राज्ये लवस्य च महात्मन:। श्रावस्ती लोक विख्याता कुशवंश निबोधत:। श्रावस्ती का जिक्र महाभारत के आदि पर्व, अ. 201, 3- 4 में भी है। इसके अलावा हरिवंश पुराण अ. 11, 21- 22, मत्स्य पुराण, अ. 12,श्लोक 30 में भी श्रावस्ती का उल्लेख है।
श्रावस्ती में ही अंगुलिमाल का स्तूप मौजूद है। यहां श्रीलंका,म्यांमार, थाईलैंड,चीन, जापान, वर्मा, तिब्बत, भूटान, आदि देशों से बौद्ध अनुयायी हर महीने पहुंचते हैं। और तपोस्थली पर आकर विश्व शांति की कामना करते हैं। लेकिन, श्रद्धालुओं को यहां तक पहुंचने के लिए लखनऊ से सडक़ मार्ग पर निजी वाहनों और रेल मार्ग से आने के लिए गोंडा से उतर कर श्रावस्ती तक का सफर बस व निजी वाहनों से करना पड़ता है। जिले में कहीं भी रेलवे लाइन नहीं है। इससे पर्यटकों को असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। बुद्ध तपोस्थली के करीब 20 वर्ष पूर्व अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा का निर्माण कराया गया था। अब इसका विस्तार भी किया जा रहा है। हालांकि इस हवाई अड्डे पर आज तक एक भी यात्री विमान नहीं उतरा। जिले में परिवहन निगम डिपो भी नहीं है। इस वजह से बहराइच व बलरामपुर से लोगों के यहां तक पहुंचने के लिए निजी व प्राइवेट वाहनों का सहारा लेना पड़ता है।
परिवहन निगम डिपो की स्थापना के लिए जिले में भूमि का अधिग्रहण करीब सात वर्ष किया गया था। लेकिन, डिपो की स्थापना अभी तक नहीं हो पायी। जिले में बहराइच, खलीलाबाद वाया बलरामपुर नई रेल लाइन बिछाने की मंजूरी मिली है। धनराशि भी स्वीकृत हो गयी है। लेकिन अभी कोई काम नहीं हुआ। इतना ही नहीं भारत सरकार ने श्रावस्ती को बौद्ध सर्किट से जोडऩे की संस्तुति प्रदान की है। लेकिन यह सब की सब परियोजनाएं अभी कागजों में हैं।