बर्डपुर क्षेत्र में सिंचाई का कोई संसाधन नहीं होने के कारण यहां पर लोगों को धान की खेती में काफी परेशानी होती थी। तराई का इलाका होने व नेपाल से बारिश के दौरान पानी आने के कारण भारी जल भराव हो जाता था। उस समय अग्रेजों ने सीमाई इलाकों में सागर की खुदाई कराई जहां पर नेपाल से आने वाले पानी को स्टोर किया जाता था। सागरों से नहरे निकाली गई जिससे खेतों की सिंचाई की जाती थी। सागरों से निकली नहरों में हमेशा पानी होने के कारण यहां कालानमक की खेती बहुत अच्छे से होती थी। कालानमक चावल कभी जिले की पहचान हुआ करता था। जल मार्ग से कालानमक चावल को देश के विभिन्न राज्य ही नहीं विदेशों में भी पहुंचाया जाता था।
भारत नेपाल सीमा के किनारे स्थित मझौली सागर, बजहा, मरथी, सिसवा, शिवपति, मोती, बटुआ, मसई, सेमरा, महली सागरों से 40 किमी से अधिक लम्बी नहरे निकली हैं। जिनके माध्यम से खेतों की सिंचाई की जाती थी। कालानमक की खेती के लिए काफी पानी की जरूरत होती थी। सागरों से निकली नहरों में हमेशा पानी होने के कारण कालानमक की खेती अच्छी होती थी। लेकिन अब समय बदलने से देखरेख व सरंक्षण के अभाव में सागरों की जल संग्रहण क्षमता कम होने से पानी कम स्टोर हो रहा है। साथ ही नहरों का भी अस्तित्व कई जगहों पर समाप्त हो गया है।
दस सागरों से 35 नहरें निकाली गई जिनके माध्यम से खेतों की सिंचाई की जाती थी। बर्डपुर के साथ ही नोगढ़ ब्लॉक क्षेत्र के कई गांवों के खेतो की सिंचाई नहरों के माध्यम से होती थी। नौगढ़ कस्बे से सटे तक जमींदारी नहर प्रणाली आई है। इसके अलावा शोहरतगढ़ ब्लॉक के कई इलाकों तक जमीदारी नहर फैली है जहां पर सागर के पानी से खेतों की सिंचाई की जाती थी। लेकिन अब सिंचाई नहीं हो पाती है लोग मौसम की मेहरबानी पर ही खेती करते हैं।