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सिद्धार्थनगर

संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रही अनोखी सिंचाई नहर प्रणाली

अंग्रेजों के जाने के बाद भी काफी दिनों तक यह अनोखी नहर प्रणाली जिन्दा तो रही लेकिन इसे सहेजने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

सिद्धार्थनगरOct 14, 2017 / 02:18 pm

Akhilesh Tripathi

Canal

कैनाल

सिद्धार्थनगर. जिले की अनोखी सिंचाई नहर प्रणाली देख रेख व संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रही है। अगर यह अनोखी सिंचाई नहर प्रणाली जिन्दा हो तो जिले की पहचान काला नमक की खुशबू वापस लौट सकती है। सागरों से निकाली गई जमींदारी नहर प्रणाली ब्रिटिश हुकूमत में अंग्रेज जमींदारों की ओर से बनवाई गई थी जिससे इस नहर का नाम जमींदारी नहर प्रणाली रखा गया था।

बर्डपुर क्षेत्र में सिंचाई का कोई संसाधन नहीं होने के कारण यहां पर लोगों को धान की खेती में काफी परेशानी होती थी। तराई का इलाका होने व नेपाल से बारिश के दौरान पानी आने के कारण भारी जल भराव हो जाता था। उस समय अग्रेजों ने सीमाई इलाकों में सागर की खुदाई कराई जहां पर नेपाल से आने वाले पानी को स्टोर किया जाता था। सागरों से नहरे निकाली गई जिससे खेतों की सिंचाई की जाती थी। सागरों से निकली नहरों में हमेशा पानी होने के कारण यहां कालानमक की खेती बहुत अच्छे से होती थी। कालानमक चावल कभी जिले की पहचान हुआ करता था। जल मार्ग से कालानमक चावल को देश के विभिन्न राज्य ही नहीं विदेशों में भी पहुंचाया जाता था।
अंग्रेजों के जाने के बाद भी काफी दिनों तक यह अनोखी नहर प्रणाली जिन्दा तो रही लेकिन इसे सहेजने के लिए कोई जतन नहीं किया गया। इससे यह नहर प्रणाली मरने लगी। अभी तक सागरों से नहरों में पानी आता है लेकिन नहरों में सिल्ट व गाद जम जाने के कारण नहरे अब सिंचाई के लायक नहीं रह गई हैं। कई बार नहरों के सिल्ट व गाद की सफाई के लिए योजना बनाई गई लेकिन विभाग द्वारा येाजना को स्वीकृति नहीं मिलने के कारण इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका जिसके चलते यह अनोखी सिंचाई प्रणाली मृत सी हो गई है। सागरों में भी सिल्ट व गाद जम जाने के कारण सागरों की जल संग्रहण क्षमता भी कम हो गई है। अगर सागरों की सफाई कराकर जल संग्रहण क्षमता बढाई जाय तो यह अनोखी सिंचाई प्रणाली फिर से जिन्दा हो सकती है। अनोखी सिंचाई प्रणाली के जिन्दा होने के साथ ही यहां पर कालानमक की खेती फिर से लहलहा उठेगी। और एक बार फिर बुद्ध भूमि देश ही नहीं विदेश में भी कालानमक के लिए जाना जाने लगेगा।
यह है सागर जिनसे निकली है नहरें
भारत नेपाल सीमा के किनारे स्थित मझौली सागर, बजहा, मरथी, सिसवा, शिवपति, मोती, बटुआ, मसई, सेमरा, महली सागरों से 40 किमी से अधिक लम्बी नहरे निकली हैं। जिनके माध्यम से खेतों की सिंचाई की जाती थी। कालानमक की खेती के लिए काफी पानी की जरूरत होती थी। सागरों से निकली नहरों में हमेशा पानी होने के कारण कालानमक की खेती अच्छी होती थी। लेकिन अब समय बदलने से देखरेख व सरंक्षण के अभाव में सागरों की जल संग्रहण क्षमता कम होने से पानी कम स्टोर हो रहा है। साथ ही नहरों का भी अस्तित्व कई जगहों पर समाप्त हो गया है।

सागर से निकली हैं 35 नहरें
दस सागरों से 35 नहरें निकाली गई जिनके माध्यम से खेतों की सिंचाई की जाती थी। बर्डपुर के साथ ही नोगढ़ ब्लॉक क्षेत्र के कई गांवों के खेतो की सिंचाई नहरों के माध्यम से होती थी। नौगढ़ कस्बे से सटे तक जमींदारी नहर प्रणाली आई है। इसके अलावा शोहरतगढ़ ब्लॉक के कई इलाकों तक जमीदारी नहर फैली है जहां पर सागर के पानी से खेतों की सिंचाई की जाती थी। लेकिन अब सिंचाई नहीं हो पाती है लोग मौसम की मेहरबानी पर ही खेती करते हैं।

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